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________________ निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि श्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति के लिए स्तुति और नमस्कार किया जाता है। संसार में नमस्कार को अपार गौरव प्राप्त है। अनेक धर्म सम्प्रदायों के लोगों में नमस्कार का नैतिक और आध्यात्मिक आदर्श अनादि काल से प्रचलित है। कहा भी है मोक्ष मार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूमृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तद्गुण लब्ध मे॥ ___ अर्थात् जो मोक्ष मार्ग के नेता हैं, जो कर्म रूपी पर्वतों को भेदने वाले हैं, जो विश्व के समस्त तत्त्वों को जानते हैं। उनको मैं उन गुणों की प्राप्ति के लिए नमस्कार करता हूँ। सन्दर्भ १. तीसरी शक्ति-पृ./४५, विश्वलोचन कोष, श्रीमद्भगवत् गीता की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन, भूमिका, पृ./१३ २. आवश्यक नियुक्ति-७४२, श्री भिक्षु आगम विषयकोष, पृ./३०४ से उधृत ३. भक्तामर अन्तस्तल में-पृ./४५ ४. आचारांग श्रुत स्कन्ध-१, अध्ययन ६ ५. भक्तामर-२ लोक/२३ ६. यजुर्वेद-३१/१८ ७. पर्युषण साधना-पृ./८६ ८. लघु दंडक-दूसरा द्वार ६. भक्तामर-श्लोक/३६ १०. मूल्यों की खोज-पृ./४७ ११. गाथा परम विजय की-पृ./१० १२. नन्दीमलगिरियावृत्ति-पृ./४१, श्री भिक्षु आगम विषयकोष से उधृत, पृ./३०३ १३. चौबीसी-१६/२ १४. आवश्यक नियुक्ति (आचार्य भद्र बाहु कृत)-३६२/१६ १५. वही-३६२/२० १६. भक्तामर-श्लोक/१६ १७. अमृत कलश भाग १-पृ./६७ १८. ... पद्मपुराण-पाताल खण्ड १६. आवश्यक नियुक्ति (आचार्य भद्रबाहु कृत)-३६२/२७ शक्र स्तुति : स्वरूप मीमांसा / ४५
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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