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________________ णमो जिणाणं द्वारा यह अभिलक्षित होता है कि उपरोक्त गुणों से युक्त अर्हत् भगवन्तों को मेरा नमस्कार हो। इस प्रकार सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अनंत शक्तिमान पुरुषोत्तम अर्हत् भगवान की स्तुति कहाँ तक की जाए? उनके गुण अनंत हैं। एक-एक गुण की अनंतपर्यायें हैं। अगर हजार जिह्वायें भी किसी को प्राप्त हो जाएं तो भी परमात्मा के गुणों का परिपूर्ण वर्णन नहीं किया जा सकता, वह अवर्णनीय है। . . सिद्धान्ततः उपरोक्त स्वरूप वाले गुण निष्पन्न भाव अरिहंत ही वंदनीय एवं नमस्करणीय है। ऐसे अहिंसा के उपदेष्टा वीतराग अर्हतों की स्तुति द्रव्य पुष्पों से नहीं हो सकती क्योंकि अर्हत तो देवाधिदेव हैं। सामान्य मुनिराज के सम्मुख जाते समय भी पांच अभिगम पालने का विधान है, जिनमें प्रथम सचित त्याग है", फिर अर्हत् तो विशिष्टतम् साधु है, वे तो अहिंसा के महान उपदेष्टा हैं। उनके लिए पुष्प पूजा का प्रश्न ही शेष नहीं रहता। आचार्य हरिभद्र ने वीतराग प्रभु के चरणों में कैसे भाव पुष्प समर्पित किये हैं। उन भाव पुष्पों से हम अर्हतों की भक्ति, उपासना व स्तुति करने के अधिकारी हैं। वे भावपुष्प निम्नश्लोक में निर्दिष्ट हैं अहिंसा सत्यमस्तेयं, ब्रह्मचर्यमसङ्गता। गुरुभक्तिस्तपोज्ञानं, सत्पुष्पाणि प्रचक्षते॥ १. अहिंसा २. सत्य ३. अस्तेय ४. ब्रह्मचर्य ५. असंगता (अपरिग्रह) ६. गुरु भक्ति ७. तप ८. ज्ञान ये आठ सत्पुष्प कहलाते हैं। निरंजन, वीतराग देवों की भावपूजा में एक निम्न श्लोक भी निर्दिष्ट है ध्यानं धूपं मन पुष्पं, पंचेन्द्रिय हुताशनम् । क्षमा जाप संतोष पूजा, पूजो देव निरंजन ॥ उपरोक्त श्लोक का संवादी एक अन्य श्लोक भी पद्मपुराण में मिलता है अहिंसा प्रथमं पुष्पं, द्वितीयं करणग्रहः तृतीयकं भूतदया, चतुर्थ शान्तिरेव च। शमस्तु पंचमं पुष्पं, दमः षष्ठ च सप्तमम् ध्यानं सत्यं चाष्टमंच, येते स्तुष्यति केशवः ।। केशव अर्थात् विष्णु भगवान इन आठ प्रकार के पवित्र पुष्पों से प्रसन्न होते हैं। वे आठ पुष्प हैं शक्र स्तुति : स्वरूप मीमांसा / ४३
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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