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________________ 1 भी उन स्तुतियों का यथावत प्रभाव है। बीदासर में जब रात्रि के समय अंगारों की वर्षा हुई तब जयाचार्य के अतिरिक्त सभी साधु अचेत हो गिर पड़े। उस समय जयाचार्य ने मंगल-करण और विघ्न निवारण हेतु अपने परम इष्ट, परम गुरु आचार्य भिक्षु की स्तुति की विघ्न का निवारण हो गया। इसी प्रकार एक बार किसी शारीरिक उपद्रव के निवारण हेतु उन्होंने मंगल का प्रयोग किया, जिससे उपद्रव शांत हो गया । इसलिए कहा गया विघ्नहरण मंगलकरण, स्वाम भिक्षु रो नाम । गुण ओलख सुमिरन कर्या, सरै अचिन्त्या काम ॥ यह उनका मंगलकरण और विघ्नहरण मंत्र था। जब श्रुत केवली और बहुश्रुत आचार्यों द्वारा निर्मित स्तोत्र भी इतनी शक्ति अपने भीतर संजोये होते हैं तो उस स्तोत्र की शक्ति का तो क्या कहना जो वीतराग वाणी से उद्भूत है। नमिऊण स्तोत्र, लोगस्स, शक्र स्तव तो वीतराग पुरुषों की वाणी है। लोगस्स एक मंत्र गर्भित स्तवन है। इसमें मंत्राक्षरों की ऐसी अनुपम और बेजोड़ संयोजना है कि इसके स्तवन, ध्यान, जप अथवा स्वाध्याय से असाध्य कार्य भी साध्य हुए हैं। इस स्तवन का एक-एक अक्षर महाशक्ति पुञ्ज है। चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति में निर्मित इस स्तवन को स्तुति साहित्य का महत्त्वपूर्ण पाठ माना गया है। संकल्प शक्ति, इच्छा शक्ति और मनः शक्ति को विकसित करने के लिए इससे निस्सृत अनेक मंत्रों की रचना उपलब्ध है । उत्तरवर्ती आचार्यों ने लोगस्स के कई कल्प बनाये हैं, जिनमें साधना, आराधना एवं मंत्राक्षरों की अनेक विधियां प्राप्य हैं। मंत्र रहस्यों के पारगामी मंत्रविद् आचार्य, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने निर्मलता, तेजस्विता और गंभीरता आदि गुणों के विकास हेतु एक रहस्य पूर्ण मंत्र की संयोजना की जिसका प्रभाव अचिन्त्य है, मंत्र जप से ही अनुभव गम्य है। मंत्र ॐ ह्रीं श्रीँ अर्हं असि आ उ सा नमः आरोग्ग बोहि लाभं समाहि वर मुत्तमं दिंतु चंदेसु निम्मलयरा आइच्येसु अहियं पयासयरा सागर वर गंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु हाँ ह्रीँ हूँ हृः ॥ मंत्र संख्या प्रतिदिन एक माला परिणाम आरोग्य, बोधि, समाधि, निर्मलता, तेजस्विता, गंभीरता आदि गुणों का विकास। ३२ / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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