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________________ संकेत मात्र है। जैसे भूगोल के नक्शे में कोई निशान बनाकर कह दिया जाता है, यह हिमालय है, यह अरावली पर्वत है, यह विंध्यांचल है, यह झील है, यह अमुक नगर है आदि। जम्बुद्वीप के बीच में एक बिंदु रख दिया जाता है, उसे मेरु पर्वत कहा जाता है, यह स्थापना निक्षेप है। ३. द्रव्य अरिहंत - तीर्थंकर नाम कर्म बंधने के बाद जब तक तीर्थंकर पद की प्राप्ति न हो तब तक वे द्रव्य तीर्थंकर कहलाते हैं। जैसे भगवान महावीर के शासन में नौ व्यक्तियों ने तीर्थंकर नाम कर्म का बंध किया-श्रेणिक, सुपार्श्व, शंख, सुलसा, रेवती, पोट्टिल अनगार, दृढ़ायु, शत्तक, उदायी। ४. भाव अरिहंत - वर्तमान समय में जो तीर्थंकर हैं (विहरमान हैं) वे ___ भाव अरिहंत कहलाते हैं। उपरोक्त चार निक्षेपों में गुण निष्पन्न होने के कारण भाव अरिहंत ही वंदनीय, नमस्करणीय, प्रार्थनीय, स्मरणीय एवं स्तुत्य हैं। वे जब इस पद पर होते हैं तब भी वंदनीय हैं और अघाती कर्मों से मुक्त हों जब 'सिद्ध' पद को प्राप्त होते हैं तब भी वंदनीय हैं। यही कारण है 'शक्र स्तुति' में “संपत्ताणं णमो जिणाणं जियभयाणं" कहकर सिद्धों को नमस्कार किया गया है और संपाविउकम्माणं णमो जिणाणं जियभयाणं कहकर अर्हतों को नमस्कार किया गया है। अरिहंत हमारे आदर्श हैं, सिद्धि हमारा लक्ष्य है। वस्तु सत्य यह है कि अर्हत् व सिद्ध-ये दोनों अवस्थाएं आत्मा का ही पूर्ण विकसित स्वरूप हैं। अतः उस स्वरूप की प्राप्ति हेतु स्तुति के माध्यम से जैन वाङ्मय में अर्हत् व सिद्धों की उपासना, आराधना की जाती है। जैन वाङ्मय में स्तुति जैन वाङ्मय में स्तोत्र, स्तव और स्तुति की परम्परा बहुत प्राचीन रही है। सूत्रकृतांग में 'वीरत्थुई' आवश्यक सूत्र में चतुर्विंशति स्तव, शक्रस्तुति, नंदी की स्थिरावली-ये सब प्रसिद्ध स्तुति प्रकरण हैं। विघ्न निवारण के लिए आगमोत्तर काल में अनेक आचार्यों ने अनेक स्तुति ग्रंथ लिखे हैं। चाहे वे विघ्न बाधाएं ग्रह कृत हो, मनुष्य कृत हो, देव कृत हो, परिस्थिति कृत हो अथवा मनोविकृति कृत हो। यद्यपि ऐहिक सिद्धि के निमित्त से जैन परम्परा में मंत्र-विद्या का प्रयोग निषिध है, पर जैन शासन की उन्नति और प्रभावना की दृष्टि से आचार्यों को मंत्र आदि ३० / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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