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________________ निष्कर्ष व्यावहारिक जगत में हम देखते हैं 'टेलीविजन' के 'ऐंटीना' की जितनी क्षमता है, वह उसी सीमा के अंदर की तरंगों को पकड़कर हमें दिखा सकता है । क्षमता (रेंज) के बाहर की तरंगों को नहीं पकड़ा जा सकता। ठीक इसी प्रकार ब्रह्मज्ञानी परमात्मा की अनंत ज्ञान-दर्शन रूपी आभा को पूर्ण रूप से नहीं आंका जा सकता। साधक उसको अपनी साधना की क्षमता व गहराई के अनुसार ही जा सकता है। इसी तथ्य की पुष्टि विभिन्न आत्मज्ञानियों की वाणी में परिलक्षित होती है। भगवान श्रीराम के गुरु वशिष्ठजी कहते हैं - 'आत्मवेत्ताओं का पूर्ण विवरण नहीं किया जा सकता।' राजा जनक को अष्टावक्र महाराज ने कहा- ' - 'तस्य तुलना केन जायते ? - उस आत्मज्ञानी महापुरुष की तुलना किससे की जा सकती है?' वैदिक परंपरा में भी श्रीकृष्ण ने गीता में कहा - यद् गत्वा न निर्वन्ते तद् धाम परमं मम्'- अर्थात् 'जहां जाकर फिर संसार में पीछे नहीं लौटना पड़े परमधाम है ।' आचारांग सूत्र में सिद्ध भगवंतों का स्वरूप बताते हुए निम्न प्रकार से कथन किया गया है अच्चेइजाइमरणस्स वट्टमग्गं णिक्खायरए सिद्ध आत्मा जन्म-मरण के मार्ग को पार कर जाते हैं । उनके स्वरूप का कथन करने में कोई शब्द समर्थ नहीं होता। जहां पर तर्क और बुद्धि की पहुंचे नहीं हो सकती और बुद्धि से भी जहां अवगाहन नहीं होता । नानकदेव ने कहा है - उपासना और तप की नौका के सहारे भगवान का भजन करते हुए मनुष्य पाप की नदी के पार उतर जाता है। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि मन में भक्ति, वचन में स्तुति और तन में विनम्रता अर्थात् प्रसन्न भाव से करबद्ध हो शीश झुका कर स्तुति करने से स्तोत्र पाठ वाग्गुच्चार मात्र न रह कर भक्ति सागर की भवार्मियों को ऊंचाइयां प्रदान करने वाला सिद्ध होता है । क्योंकि हृदय-भक्ति की अभिव्यंजना का नाम ही है - स्तोत्र । इस प्रकार स्तव - स्तुति से श्रद्धा को बल मिलता है । सम्यक् श्रद्धा से भावधारा निर्मल होती है। निर्मल भावधारा से जैसे-जैसे कर्मावरण दूर होता है, वैसे-वैसे ज्ञान - बोधि, दर्शन - बोधि और चारित्र - बोधि की निर्मलता बढ़ती जाती है । जब ये बोधियां चरम सीमा तक पहुंच जाती हैं तब केवलज्ञान, केवलदर्शन और क्षायिक चारित्र प्रकट होता है। इस प्रकार आत्मा में केवलज्ञान- बोधि, केवलदर्शन-बोधि और संपूर्ण चारित्ररूप-बोधि प्रकट होती है । ऐसे केवली आत्माएं अंतः क्रिया करके मोक्ष स्वरूप को प्राप्त करती हैं । अतएव स्तुति, महापुरुषों का नामस्मरण आत्मा अध्यात्म, स्तवन और भारतीय वाङ्मय - २ / २१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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