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________________ की ये हृदयस्पर्शी पंक्तियां इसी तथ्य को स्पष्ट कर रही हैं - देवल मांहे देहुरी, तिल जै है विस्तार । मांहे पाती मांहे जल, माहे पूजणहार ॥ अर्थात् अंतरात्मा में ही मंदिर है, वहीं पर देवता है, वहीं पूजा की सामग्री है और पुजारी भी वहीं मौजूद है। स्तुति-मंगल के परिणाम भारतीय संस्कृति में केवल सुंदरता को नहीं, अपितु 'सत्यं शिवं सुंदरं' को महत्त्व दिया गया है । यदि अति सुंदर भवन का निर्माण किया जाए और वर्षाऋतु में उससे पानी टपकने लगे तो उस भवन की केवल सुंदरता किस काम की ? यदि एक अत्यंत सुंदर बांध बनाकर तैयार कर लिया जाए और बाद में उसमें से पानी बहने लगे, टिके नहीं तो क्या उसका सौंदर्य टिका रहेगा? कागज का पुष्प चमक, दमक व कमनीय कलेवर वाला होते हुए भी सौरभहीन होने से उसे कोई नहीं सूंघेगा। यही बात साधना के क्षेत्र में है। साधक के जीवन में संकल्प की सुंदरता, श्रद्धा रूपी सत्य और तन्मयता रूपी शिव का त्रिवेणी संगम अत्यंत अपेक्षित है । इस संगम के लिए स्तुति के अनेक परिणाम एवं सोपान हैं । १५ प्रभु प्राप्ति के चार सोपान इस प्रकार हैं (१) प्रीतियोग : प्रभु के प्रति अनन्य प्रेम का अभ्यास (२) भक्तियोग : सर्वस्व समर्पण की भूमिका तक पहुंचना (३) वचन योग : प्रभु आज्ञा को जीवन- प्रमाण समझ उसका पालन करना । (४) असंगयोग : उपर्युक्त तीनों योगों के क्रमिक और सतत अभ्यास से एक ऐसी आस्था जागती है, जिसमें आत्मा सर्व संग से निर्लेप बनकर अनुभव गम्य अपरिमेय आनंद पाने लगता है । आचार्य हरिभद्र ने आराधना के पांच सोपान बताए हैं (१) प्रणिधान : रोम-रोम में धर्माराधना की रुचि (२) प्रवृत्ति : धर्माराधना में प्रवृत्ति करना (३) विघ्नजय : बीच में आने वाले विघ्नों को जीतना (४) सिद्धि : आराधना को जीवन में आत्मसात् करना (५) विनियोग : इस आराधना का दूसरों को दान देना । इसी तरह आवश्यकनिर्युक्ति में वंदना की निम्नोक्त छह निष्पत्तियां उपलब्ध हैं १६ – अध्यात्म, स्तवन और भारतीय वाङ्मय - २ / १६
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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