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________________ का क्षीरसागर बन गया। संत कबीर के काव्य में वेदांत का अद्वैत, नाथों का हठयोग, सिद्धों की सहज - साधना और इस्लाम का एकेश्वरवाद - सब कुछ घुला - मिला है। इस अर्थ में वे समन्वित - साधना के संत कवि माने जा सकते हैं । वे निर्गुणभक्ति, ज्ञानाश्रयी शाखा के हामी थे । उन्होंने नाम सुमिरन की महिमा का संग करते हुए कहा 1 जगत सुमिरन कर ले, नाम सुमिर ले, को जाने कल की । में खबर नहीं पल की ॥ काम क्रोध मद लोभ निवारों, बात यह असल्ल की । ज्ञान वैराग दया मन राखों, कहे कबीर दिल की ॥ नाम - सुमिरन की मधुरिमा का आदर्श नारद, हनुमान, अंबरीष, प्रह्लाद, सूरदास, त्यागराज, मीरा, तुकाराम, तुलसीदास, कबीर, भद्राचल, रामदास सहित बहुत से संतों, कवियों द्वारा प्रस्तुत किया गया है। रहीम, मीरा, जायसी, दादू, रैदास आदि ने संत साहित्य की परंपरा में पथ-प्रदर्शन के रूप में भगवत्प्राप्ति हेतु जिन साधनों का वर्णन किया है, उनमें से पांच साधन प्रमुख हैं भगवन्नाम का निरंतर जप भगवन्नाम के साथ अनन्य संबंध • भगवत्कृपा पर अटल - विश्वास सर्वत्र भगवत्दर्शन • संपूर्ण कामनाओं का त्याग । यद्यपि जैन संत परंपरा में साधना के जो तीन मार्ग हैं- ज्ञान, दर्शन और चारित्र - उनमें स्तुति या भक्ति का सीधा निर्देश परिलक्षित नहीं होता है, पर इस त्रिवेणी में शुद्ध आध्यात्मिक अनुभव की जो बात आती है, वह भक्ति आध्यात्मिक चेतना का ही स्फुरण है । वह चारित्र का एक अंग है । इसलिए जैन परंपरा में भक्ति के लिए अवकाश ही नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। भगवान की उपासना, भक्ति व ध्यान आदि के लिए जैन शासन में 'स्तुति' शब्द का प्रयोग भी मिलता है। स्तुति का अर्थ है- प्रशंसा । प्रशंसा में नम्रता व गुणानुराग के भाव सन्निहित रहते हैं । महापुरुषों के सद्गुणों की प्रशंसा करने से जीवन में शनैः-शनैः उन गुणों को उतारने की प्रेरणा मिलती है और उन गुणों के प्रति आकर्षण पैदा होता है। साथ ही गुणीजनों के प्रति मन में श्रद्धा के भाव भी पुष्ट होने लगते हैं । चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति 'चौबीसी' में है । जैन साहित्य में स्तुति की परंपरा अति प्राचीन है। जैन संत परंपरा में भी भक्ति रस से स्निग्ध और अध्यात्म, स्तवन और भारतीय वाङ्मय - १ / ७
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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