SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. अध्यात्म, स्तवन और भारतीय वाङ्मय-१ भारत सदैव त्याग और वैराग्य का केंद्र स्थल रहा है। आज तक जो भी विभूतियां संसार में पूजनीय, वंदनीय एवं स्मरणीय बनी हैं, उनके जीवन में नैसर्गिक अध्यात्मवाद कूट-कूट कर भरा रहा है। निस्संदेह भौतिक-विज्ञान की अपेक्षा आत्म-विज्ञान कहीं अधिक सूक्ष्म, गहन और कल्याणकारी है। यह सदा-सर्वदा हितकर और मंगलप्रद रहा है। इसमें कभी, कहीं, किसी तरह से अहित की संभावना नहीं रहती है। मानव विकास की चरम परिणति भौतिकवादी अभ्युत्थान में नहीं, वरन आध्यात्मिक गतिशीलता और आत्म-कल्याण में ही है। आध्यात्मिक स्फुरणा को सतत गतिशील बनाए रखने में यद्यपि संतों की विभिन्न परंपराओं में आचार-विचार विषयक यत्किंचित मतभेद परिलक्षित होता रहा है, पर आत्मकल्याण सबका लक्ष्य रहा है। भारत देश विश्व शांति तथा मानवता का मार्ग बताने वाले महापुरुषों-राम, कृष्ण, महावीर और बुद्ध की भूमि रहा है। जिन्होंने समग्र संसार को शांति, नीति, ज्ञान और चारित्र आदि मानवीय मार्ग का सच्चा दर्शन दिया। अनादिकाल से ही यहां ज्ञान-विज्ञान की गवेषणा, अनुशीलन एवं अनुसंधान होता रहा है। विश्व सभ्यता के इतिहास में अपनी गौरवमयी सांस्कृतिक परंपराओं एवं आध्यात्मिक चिंतन धाराओं के लिए भारत प्रसिद्ध रहा है। काल-चक्र के प्रवाह में विश्व-पटल पर अनेक संस्कृतियां एवं विचारधाराएं उभरीं और विलुप्त हुईं, पर भारत की महान सांस्कृतिक परंपराएं अपने आध्यात्मिक वैभव को संजोए हुए अविच्छिन्न रूप में आज तक चली आ रही हैं। इन गौरवपूर्ण परंपराओं को सजीव, गतिशील एवं चेतना संपन्न बनाए रखने में यहां के ऋषि-मुनियों, संतों व आचार्यों का विशेष मार्ग-दर्शन रहा है। चूंकि तीर्थंकर, बुद्ध, गुरु, साधु-संत तथा महापुरुष स्वयं अनुशासन में ही रहते हैं, अतः दूसरों को भी अनुशासन की प्रेरणा व शिक्षा देते हैं और वह कारगर भी होती है। अध्यात्म-संपदा की दृष्टि से संसार का कोई भी देश या राष्ट्र भारत की तुलना नहीं कर सकता। इसकी अपनी अनेक विशेषताएं हैं। विश्वभर में भारतीय अध्यात्म, स्तवन और भारतीय वाङ्मय-१ / १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy