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________________ दूसरी विधि “आरोग्य बोहि लाभं समाहिवर मुत्तमं दितु" इस पूरी पंक्ति को केवल विशुद्धि-केन्द्र पर भी नीले रंग में किया जा सकता है। १. प्रयोग विधि शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करें, मेरुदण्ड और गर्दन को सीधा रखें, आँखें कोमलता से बंद। अनुभव करें-मेरे चारों ओर मयूर की गर्दन की भांति चमकते हुए नीले रंग का प्रकाश फैल रहा है। दो मिनट। चित्त को विशुद्धि केन्द्र पर केन्द्रित करें। ‘आरोग्ग...दिंतु' दस मिनट तक लयबद्ध श्वास के साथ चमकते हुए नीले अक्षरों में इस मंत्र जप को जपें। (पांच मिनट वाचिक जप के रूप में और पांच मिनट मानसिक जप के रूप में) उसके बाद अनुभव करें विशुद्धि केन्द्र से नीले रंग के परमाणु निकलकर शरीर के चारों तरफ फैल रहे हैं। पूरा आभामंडल नीले रंग के परमाणुओं से भर रहा है। मुझे आरोग्य, बोधि और समाधि की प्राप्ति हो रही है। मेरी वासनाएं अनुशासित हो रही हैं, मेरा चित्त शांत हो रहा है, आनंद जाग रहा है, आनंद जाग रहा है, आनंद जाग रहा है। दो तीन दीर्घ श्वास के साथ प्रयोग को संपन्न करें। नोट-१. इस प्रयोग को कम से कम बीस मिनट अवश्य करें। २. कफ प्रकृति वाले व्यक्ति नीले रंग का ध्यान ज्यादा न करें। यह प्रयोग हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। जिस प्रकार सौरमंडल से विकिरण होने वाली और घातक गैसों के खतरों से समतल मंडल में स्थित ओजोन गैस की गहरी नीली परत छलनी का काम करती है। यह पृथ्वी की ओर आने वाले सौर विकिरण में से पराबैंगनी किरणों तथा विषैली गैसों को अवशोषित कर लेती है उसी प्रकार शरीर को संभावित या उत्पन्न बीमारी से बचाकर समस्थिति बनाये रखने के लिए प्रतिरोधक शक्ति प्रत्येक प्राणी के शरीर में विद्यमान होती है। पूर्ण विकसित नाड़ी तंत्र शरीर की बाह्य और आन्तरिक स्थिति के प्रति वफादार चौकीदार की तरह सजग रहता है। शरीर के नियमित और व्यवस्थित संचालन के लिए शरीर रूपी रसायन शाला में प्रतिक्षण रासायनिक प्रतिक्रियाएँ चलती रहती हैं। शरीर के प्रत्येक भाग में रक्त के माध्यम से ऐसे स्राव संचालित करती है जिनसे रासायनिक परिवर्तन घटित होता है और परिस्थितियों में कायम (संतुलित) रहने की क्षमता पैदा होती है। निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि शरीर की स्वस्थता, सक्रियता और चिरजीविता में बाधक तत्त्वों से लोहा लेने के लिए अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ प्रतिपल २०६ / लोगस्स-एक साधना-११
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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