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________________ भक्ति पूर्वक लोगस्स के पाठ से अथवा अर्हत् स्तुति से कर्म निर्जरा के साथ-साथ असाध्य रोग भी नष्ट होते देखे गये हैं और प्राण के प्रकंपन चैतन्य जागरण में भी सहायक बनते हैं। प्राण शक्ति की सुरक्षा और संवर्धन ही अच्छे स्वास्थ्य का आधार है। यह अनुभूत सच्चाई है कि व्यक्ति प्रतिदिन यदि आधा घंटा भी स्वयं को सद्विचारों से भावित करता है तो एक माह में ही उसके व्यक्तित्व का कायाकल्प हो सकता है । लोगस्स और चैतन्य - केन्द्र विशुद्धि-केन्द्र, ज्योति - केन्द्र, दर्शन-केन्द्र, शांति - केन्द्र और ज्ञान - केन्द्र - इन पांच चैतन्य- केन्द्रों को सक्रिय करने से व्यवहार और आचरण पवित्र बनते हैं और असत् आचरण तथा असत् व्यवहार पर नियंत्रण स्थापित होता है। जिस चैतन्य - केन्द्र प्राण और चित्त जाते हैं, उस चैतन्य-केन्द्र के निर्मलीकरण की प्रक्रिया चालू हो जाती है । चित्तसमाधि का बहुत बड़ा रहस्य है चैतन्य - केन्द्रों का निर्मलीकरण । ह्रीं आदि संयुक्त बीजाक्षरों के उच्चारण भी अनेक रोगों के लिए औषध का काम करते हैं । इनका उच्चारण जितनी बार किया जाता है हृदयगत रक्त का उतनी ही तीव्रता के साथ संचालन होता है। इससे रक्त शुद्ध होता है, हृदय की धमनियों को आराम मिलता है। मंत्र - शास्त्र में ऐसे-ऐसे मंत्रों का उल्लेख है जो हमारे शरीर तंत्र के अमुक-अमुक भाग को प्रभावित कर तत्संबंधी रोगों का निवारण करते हैं । राजस्थानी भाषा के एक प्राचीन ग्रंथ में कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण तथ्य लिखे हैं जो पता नहीं लेखक के निजी अनुभवों पर आधारित हैं अथवा दूसरे ग्रंथों के आधार पर लेकिन बहुत ही आश्चर्य जनक और महत्त्वपूर्ण हैं । उसमें लिखा है - " नाभि कमल की अनेक पंखुड़ियाँ हैं । जब आत्म परिणाम अमुक पंखुड़ी पर जाता है, तब क्रोध की वृत्ति जागती है, जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब मान की वृत्ति जागती है, जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब वासना उत्तेजित होती है और जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब लोभ की वृत्ति उभरती है । जब आत्म परिणाम नाभि कमल से ऊपर उठकर हृदय कमल की पंखुड़ियों पर जाता है तब समता की वृत्ति जागती है, ज्ञान का विकास होता है, अच्छी वृत्तियाँ उभरती हैं । जब आत्म-परिणाम दर्शन केन्द्र पर पहुँचता है तब चौदह पूर्वों के ज्ञान को ग्रहण करने की क्षमता जागृत होती है । यह सारा प्रतिपादन किस आधार पर किया गया है यह निश्चय पूर्वक नहीं लोगस्स : रोगोपशमन की एक प्रक्रिया / २०३
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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