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________________ नाम से पहचाना जाता है । भाव आरोग्य का दूसरा अर्थ है - मोक्ष के लिए • बोधि- सम्यक् दर्शनादि का लाभ । यही कारण है लोगस्स में आरोग्य, बोधि और समाधि की युगपत् मांग की गई है। सामान्यतः रोग के दो प्रकार हैं १. द्रव्य रोग - ज्वर आदि शारीरिक रोग २. भाव रोग - कर्म (अष्ट कर्म) जो भव परम्परा को बढ़ाने वाले हैं । भव रोग / भाव रोग, जिससे सारा संसार संत्रस्त है भक्त इस स्तुति के माध्यम से अर्हत् भगवान से “ आरोग्ग...दिंतु " उच्चरित कर कर्म रोग से मुक्ति पाने की अभिलाषा व्यक्त करता है किंतु प्रासंगिक फल के रूप में द्रव्य रोग जो कर्म रोग के कारण उत्पन्न होते हैं, कर्मरोग के समाप्त होने पर स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। भरूच के एक परिवार में माता, पिता, पुत्र और पुत्रवधु चार व्यक्ति थे । चारों धार्मिक थे। सास-बहु में मां-पुत्री का सा प्रेम और वात्सल्य व्यवहार था। एक दिन अष्टमी को सास-बहु ने उपवास तथा पिता-पुत्र ने एकासन तप किया। बहु रसोई बना रही थी । दाल की तपेली में छिपकली के मुँह में से कुछ लार की बूंद टपक गई । बहु को यह मालूम नहीं था । पिता-पुत्र दोनों भोजन करके ऊपर की मंजिल में 'उपासना - कक्ष' में सामायिक लेकर बैठ गये और धर्म चर्चा करने लगे । नीचे की मंजिल में सास-बहु नमस्कार महामंत्र की अनुपूर्वी गिन रही थी । दो-तीन घंटे बाद पिता-पुत्र दोनों के शरीर में जहर फैल गया। दोनों बेहोश हो गये। ऊपर से आवाज़ आनी बंद हो गई तो बहु ने सास से कहा- माताजी ! बाप-बेटे दोनों में से किसी की आवाज़ नहीं आती है। सास बोली- दोनों माला फेरते होंगे। कुछ देर बाद दोनों ने कान लगाकर ध्यान से सुना तो भी दोनों की आवाज नहीं सुनाई दी। दोनों के मन में शंका हुई । सामायिक पूरी कर दोनों ऊपर की मंजिल के उपासना कक्ष में पहुँची । देखा तो बाप-बेटे दोनों बेहोश पड़े हैं। दोनों के शरीर में जहर फैल जाने से उनका शरीर हरा हो गया। सास ने बहु से कहा- बेटी! डॉक्टर को जल्दी बुलाओ । बहु को नवकार मंत्र एवं भक्तामर स्तुति पर पूर्ण श्रद्धा थी। उसने दृढ़ता से कहा-मां ! डॉक्टर को बुलाने की जरूरत नहीं है | मानतुंग आचार्य में प्रभु के प्रति दृढ़ श्रद्धा से अपूर्व शक्ति आ गई थी, क्या हममें इतनी शक्ति नहीं आ पायेगी ? जो अर्हत् परमात्मा के प्रति श्रद्धा भक्ति करते हुए उनमें तन्मय हो जाता है, उसे कौन-सी शक्ति है, जो प्राप्त नहीं होती ? आप मेरे ससुरजी का मस्तक अपनी गोद में ले लीजिए और मैं आपके पुत्र का मस्तक अपनी गोद में लेती हूँ। फिर आँखें बंद कर दोनों ने सम्पूर्ण भक्तामर स्तोत्र का पाठ किया तत्पश्चात निम्न श्लोक बोलने लगीं लोगस्स : रोगोपशमन की एक प्रक्रिया / २०१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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