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________________ • दुष्प्रवृत्तियों से बचने के लिए • गुणात्मक विकास के लिए • भावनात्मक आलंबन के लिए • मानसिक शांति और संतोष के लिए • चिंता और भय से मुक्त होने के लिए • सम्यक् दृष्टि और सम्यक् दिशा बोध के लिए • लक्ष्य प्राप्ति के लिए • लौकिक और पारलौकिक उत्कर्ष के लिए • आरोग्य, बोधि और समाधि के लिए • आत्म-दर्शन, आत्म-सिद्धि के लिए निष्कर्ष रविन्द्रनाथ टैगोर की निम्नोक्त पंक्तियाँ मानव की विशिष्टता को दर्शा रही हैं- "समुद्र में मछली मौन रहती है, धरती पर पशु शोर करते हैं और हवा में पक्षी गाता है पर मनुष्य में सागर का मौन, धरती का शोर, हवा का संगीत- तीनों विद्यमान हैं। इससे मनुष्य की विशिष्टता सिद्ध होती है । मनुष्य को ज्ञान प्रवीणता, संतुलन और अन्तर्दृष्टि प्राप्त है।" सचमुच हमारे पास सब कुछ है, चिंतन शक्ति, ज्ञान शक्ति, श्रद्धा शक्ति, कर्म शक्ति और ऊर्जा शक्ति का अक्षय कोष हमारे भीतर विद्यमान है। जीने का मतलब ही है प्रतिक्षण विकास का उर्ध्वारोहण, अनंत शक्तियों का प्रकटीकरण, अस्मिता और अस्तित्व की तलाश में सफल पुरुषार्थी प्रयत्न । निस्संदेह निर्माण का हर पल उत्सव बन अनेक उपलब्धियां देता है । अतएव अपने चैतन्य वीर्य का अनुक्षण उपयोग करते रहना चाहिए, जब तक मोक्ष महोत्सव की सफलताएँ उसका मस्तकाभिषेक न करें । “अपने हाथ जगन्नाथ" की कहावत इसी ओर संकेत करती है कि "अयं मे हस्तो भगवान् अयं में भगवत्तरः" अर्थात् ये मेरे हाथ ही भगवान है, इतना ही नहीं ये भगवान से बढ़कर है। अपने द्वारा अपना निर्माण यह शाश्वत सत्य है । इस सत्य का साक्षात्कार ही "तित्थयरा मे पसीयंतु " है । क्योंकि सम्यक् दिशा में लगा संकल्प ही मनुष्य को “कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयं" जैसा निश्चय प्रदान करता है । स्वस्थ जीवन के संदर्भ में मनोनुशासनम् की निम्नोक्त पंक्तियाँ नीति वाक् की तरह लागू होती हैं “ज्योतिर्मयोऽहं आनंदमयोऽहं ससद्धं निर्विकारोहं वीर्यवानहं" ।
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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