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________________ स्मरण करते ही ऊर्जा प्रवाह को अधिक गतिशील बना देता है। ऊर्जा प्रवाह की गतिशीलता प्राणों में अद्भुत शक्ति का संचार करती है। अर्हत् नमस्कार तत्काल बंध की अपेक्षा असंख्यात् गुणी निर्जरा का कारण है इसलिए सोना, खाना, जाना, वापस आना और शास्त्र प्रारंभ आदि क्रियाओं में अर्हत् नमस्कार अवश्य करना चाहिए। किंतु व्यवहार नय की दृष्टि से गुणधर भट्टारक का अभिप्राय है कि परम्परा के अतिरिक्त अन्य सब क्रियाओं में अर्हत् नमस्कार नियम से करना चाहिए क्योंकि अर्हत् नमस्कार किये बिना प्रारंभ की हुई क्रिया में मंगल का फल नहीं पाया जाता। इसी तथ्य की पुष्टि हेतु कषाय पाहुड की निम्नोक्त पंक्तियां विमर्शनीय हैं अरहंत णमोक्कारं भावेण य जो करेदि पयऽमदि। जो सब दुक्ख मोक्खं पावइ अचिरेण कालेण ॥ जो विवेकी जीव भक्ति पूर्वक अर्हत् को नमस्कार करता है वह अतिशीघ्र समस्त दुःखों से मुक्त हो जाता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने लिखा है जब स्मृति शक्ति, निर्णय शक्ति और आत्म-नियंत्रण की शक्ति क्षीण हो जाती है तब आदमी बूढ़ा हो जाता है, चाहे वह पचास वर्ष का ही क्यों न हो। और एक व्यक्ति पचास वर्ष का है पर उसकी स्मृति शक्ति तेज है। उसकी निर्णय शक्ति भी अच्छी है और वह आत्म नियंत्रण करने में भी सक्षम है तो वह बूढ़ा होते हुए भी युवा है, वह वृद्ध युवा है। नई शक्तियों की प्राप्ति और प्राप्त शक्तियों का संरक्षण तथा उपयोग किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में जीवन में आनंद उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार बुढ़ापा शक्ति संरक्षण का साधन बन जाता है। वृद्धावस्था से मुक्ति : कुछ प्रयोग सामान्यतः चालीस वर्ष के पश्चात् हमारे फेफड़े की शक्ति क्षीण हो जाती है। जितनी प्राणवायु लेनी चाहिए उतनी प्राणवायु को लेने की शक्ति उनमें नहीं रहती। उस समय दीर्घश्वास लेना बहुत जरूरी है। चालीस वर्ष के बाद आदमी जितना लम्बा श्वास लेता है उतना ही स्वस्थ और युवा रह सकता है।१२ लम्बा श्वास और लम्बे श्वास पर चित्त को केन्द्रित करने का अभ्यास-ये दोनों बातें मिल जाती हैं तब यह प्रक्रिया बहुत शक्तिशाली और महत्त्वपूर्ण हो जाती है। योगासन और प्राणायाम के द्वारा पिच्युटरी और अन्तःस्रावी ग्रंथियों की क्षमता बहुगुणी होती है, उसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है, सुषुप्त शक्तियाँ जागृत होती हैं। एकाग्रता का विकास उत्तरोत्तर होता जाता है। शारीरिक, मानसिक, तित्थयरा में पसीयंतु / १८७
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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