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________________ बीस विहरमान जप के साथ इस यंत्र को लिखने तथा पास में रखने से सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। (हृदय वाणी-पृ./२०) निष्कर्ष निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि वर्तमान में तीर्थंकर भगवान की भक्ति के दो रूप अधिक प्रसिद्ध हैं१. नित्य भक्ति २. अनुष्ठान भक्ति १. नित्य भक्ति-प्रतिदिन की जाने वाली भक्ति को नित्य भक्ति कहते हैं, यह दो प्रकार से होती हैं१. सामान्य भक्ति २. विशेष भक्ति .. १. सामान्य नित्य भक्ति-प्रातःकाल उठने के बाद पांच नवकार बोलकर चौबीस तीर्थंकरों के नामों का स्मरण करना, लोगस्स का पाठ बोलना। २. विशेष नित्य भक्ति-प्रतिदिन एक-एक तीर्थंकर के नाम की माला फेरना, वर्द्धमान भक्तामर स्तोत्र का पाठ करना, सायं कल्याणमंदिर का पाठ करना, किसी भी तीर्थंकर भगवान की स्तुति, चौबीसी का स्वाध्याय आदि। २. अनुष्ठान तीर्थंकर भक्ति-तप आराधना के साथ किसी-किसी समय में तीर्थंकरों के नाम का जप, ध्यान, वंदन आदि अनुष्ठान पूर्वक करना। इसके कई रूप प्रचलित हैं जैसे कल्याण तप-तीर्थंकर भगवान के गर्भ आगमन (च्यवन), जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान, निर्वाण दिन आयम्बिल अथवा उपवास पूर्वक कल्याणक के अनुसार नाम जप वंदना और कायोत्सर्ग करना। निस्संदेह कहा जा सकता है कि चौबीस तीर्थंकरों के नाम वीतरागता से युक्त होने के कारण मंत्राक्षर रूप है। उनके विविध प्रयोग उपलब्ध है। मंत्रविद् आचार्यों का कहना है-मंत्र जप से जीभ पर अमृत का स्राव होता है। शरीर तेजस्वी, शीतल और कांतिमय बनता है। मन निर्विकार अवस्था को प्राप्त होता है। दीर्घकाल तक नियमित मंत्र, जप और सतत् उनके स्मरण से जागरूक चेतना का विकास होता है तथा आनंद की उपलब्धि होती है। प्रभु के नाम, गुण, कथन, कीर्तन से भक्त सिद्धि एवं संसार मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। * देखें लोगस्स : एक साधना-भाग-2(कल्याण तप-सोगस्स और तप के पाठ में) १७६ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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