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________________ उसभमज्जियं च वदे, संभवमभिनंदणं च सुमई च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥ सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपूज्जं च । विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥ कुथुं अरं च मल्लिं, वदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्ठनेमिं पासं तह वद्धमाणं च ॥ • महावैराग्य की अचपलता, निमर्मता और आत्म-शक्ति की प्रफुल्लिता - ये सब विशेषताएं इन महायोगिश्वरों के जीवन में गर्भित थी । अतः निष्ठापूर्वक उनके नाम स्मरण से उनका दिव्य रूप, अनंत ज्ञान-दर्शन आदि गुण, उनकी प्राणीमात्र के प्रति कल्याण की भावना आदि विशेषताएं हमारे सामने प्रतिष्ठित रहती हैं । यह एक मनोवैज्ञानिक रहस्य है कि विकारी का स्मरण व्यक्ति को विकारी और त्यागी का स्मरण व्यक्ति को त्यागी बनाता है । अग्नि के समीप बैठने वालों को उष्णता और जल के समीप बैठने वालों को शीतलता का अनुभव होता है। हाथ में तलवार लेने से शौर्य और भांग लेने से नशा उत्पन्न होता है । वैसे ही शुद्ध चिदानंद स्वरूप अनंत सिद्धों की भक्ति से तथा सर्वदूषण रहित, कर्ममलमुक्त, निरोग, सकल भयरहित, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी जिनेश्वर अर्हत् भगवन्तों के नाम स्मरण से उन पवित्र गुणों का स्मरण होने के कारण आत्मा स्वरूपानंद की श्रेणी पर आरूढ़ होने लगती है। आत्मा में प्रकाश, पुरुषार्थ, विरक्ति, शांति, वैराग्य और निर्जरा भाव प्रबल बनता जाता है। जैसे दर्पण हाथ में लेने पर मुखाकृति का भान होता है वैसे ही सिद्ध या जिनेश्वर स्वरूप के चिंतन रूप दर्पण से आत्म-स्वरूप का भान होता है। हनुमान जामवंत की प्रेरणा से दुर्धर पर्वत को उठाने में समर्थ हुए। लंका जाते वक्त महासमुद्र को पार करने में भी वे सफल हुए । जिज्ञासा होती है कि एक क्षण पहले जो अपने-आप को असहाय मान रहा था, बंदर मान रहा था, दूसरे ही क्षण उसमें इतना शौर्य, वीर्य कहाँ से आया? क्या जामवंत ने कोई शक्तिपात किया अथवा चुंबक एवं मंत्र का प्रयोग किया ? नहीं । जामवंत ने न शक्तिपात किया और न ही कोई मंत्र अथवा चुंबक का प्रयोग किया परन्तु रामभक्त हनुमान को अपनी शक्ति तथा शौर्य से परिचित अवश्य करवा दिया। अपनी शक्ति का अहसास करवा दिया। इसी प्रकार अनंत, अक्षय शक्ति के भंडार तीर्थंकरों के नाम में अद्भुत शक्ति विद्यमान होने से उनका नाम परम पावन व मंगल स्वरूप है । अपने तीर्थंकर पद में वे जिन-जिन नामों से पहचाने जाते थे, वे गुण निष्पन्न एवं पवित्र नाम हमारी जुबां पर आते ही एक अद्भुत शक्ति का संचार होता है । इसी तथ्य को उजागर करने वाली आचार्य मानतुंग की निम्नोक्त पंक्तियां स्मरणीय हैं- नाम स्मरण की महत्ता / १६५
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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