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________________ होता है तो नाटक-नौटंकी में किसी कामिनी की पायल धुंघरुओं की रूनक-झूनक से चित्त उत्तेजित भी हो उठता है। गालियां और भजन दोनों से निकलने वाले स्वरों का प्रभाव अलग-अलग होता है। इसी परिप्रेक्ष्य में 'लोगस्स' के ध्वनि प्रकंपनों एवं वर्ण समूहों को मैं एक महाशक्ति के रूप में देखती हूँ। विशिष्ट महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि 'लोगस्स-महामंत्र' में संयोजित वर्ण समूह से चित्त में असाधारण ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं और उन असाधारण एवं चामत्कारिक तरंगों से ऋणात्मक या धनात्मक विद्युत शक्ति पैदा होती है उससे कर्म-कलंक ध्वस्त हो जाता है तथा अनेक ऋद्धियां-सिद्धियां प्राप्त होती हैं शर्त एक ही है कि अर्हत् सिद्ध परमात्मा से अद्वैत स्थापित किया जाये। यह सब साधना के प्रकर्ष से ही संभव हो सकता है। लोगस्स का अन्वेषण एवं अभिव्यक्ति एक दिव्य साधना के रूप में उल्लिखित होने के कारण इस कृति का नाम “लोगस्स-एक साधना" रखा गया है। अर्हत् व सिद्ध भगवन्तों का विराट स्वरूप एक लघुकाय पुस्तक में कैसे समा सकता है? भास्कर के विश्वव्यापी आलोक को एक पक्षी अपने घोंसले में बंद करने का गर्व कैसे कर सकता है? फिर भी वह अपने घोंसले के अंधकार को तो दूर कर ही सकता है। क्या विराट महासागर में से एक-एक जल-कणों को निकालकर दिखाना उस महासागर का परिचय हो सकता है? फिर भी जो कुछ बन पाया है यह उन महापुरुषों के प्रति भक्ति के उद्गार तथा हार्दिक श्रद्धा का एक लघु रूप है। अर्हत्-सिद्ध भगवन्तों के प्रति मेरे अन्तस्तल में विद्यमान श्रद्धा और भक्ति ही इस रचना की पृष्ठभूमि है। चैतन्य की अमृतकथा, लोकमंगल की भावना, अमृतत्व की खोज व प्राप्ति ही इस कृति को लिखने का उद्देश्य रहा है। कर्मों का क्षय ही चेतना को विकसित करता है। इस सत्य तथ्य को मध्य नजर रखते हुए इस ग्रंथ में संसार के बंधन और मोक्ष का समाधान प्रस्तुत करने के साथ-साथ ध्यान की प्रक्रिया का दिग्दर्शन कराया गया है तो दूसरी तरफ लोगस्स के व्यावहारिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक स्वरूप को भी अभिव्यक्त करने का प्रयास रहा है। क्योंकि विज्ञान का तथ्य तथा दर्शन का सत्य साहित्य के धरातल पर सुन्दर का रूप धारण कर जन सामान्य के लिए आह्लादक बन जाता है। संयम पर्याय के पच्चीस वर्षों की परिसमाप्ति पर वीर भूमि बीदासर में जब मैंने नमस्कार महामंत्र भाग १ व भाग २-दोनों पुस्तकें श्रीचरणों में समर्पित की तब चारों तरफ से अपनी दिव्य ज्योत्सना से आह्लादित कर गुरुदेव (आचार्यश्री महाप्रज्ञजी) ने अपने चरणों की इस नन्हीं सी रजकण को पुरुषार्थी बनने का सामर्थ्य प्रदान करते हुए कहा-"पुण्ययशा का अध्ययन अच्छा है, यह कुछ न कुछ
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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