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________________ ऊर्जा हमें परम अस्तित्व की साक्षी का और स्वरूप की समानता का बोध कराती है । यह ऊर्जामय आवर्त्तन ही श्रद्धा का केन्द्रबिंदु है । मस्तिष्क की चेतना श्रद्धा से सक्रिय, वंदना से उत्तेजित, भक्ति से भावित, समर्पण से स्रावित, शब्दों से भाषित तथा कीर्तन से घर्षित होती है। जिनकी अनेक फलश्रुतियां आगमों में तथा अन्य विवर्णित हैं। तीर्थंकर बंध के बीस कारणों में से आठ कारण तो गुणानुवाद-गुण-कीर्तन से ही संपृक्त हैं । ३३ अर्हत् भक्ति की फलश्रुतियां १. सुलभ बोधि की प्राप्ति का उत्तम हेतु । २. पुण्यानुबंधी पुण्य के उपार्जन का उत्तम हेतु । ३. सुप्त शक्तियों के जागृत एवं जागृत शक्तियों को उत्थित समुत्थिक करने का उत्तम हेतु । ४. सर्व पाप प्रणाशक ५. अनिष्टं रोधक ६. ग्रह शांति में सहायक ७. लौकिक व लोकोत्तर सिद्धियों की प्राप्ति ८. साधना का सशक्त साधन ६. मुक्ति प्राप्ति का सर्वोच्च साधन नोट- लोगस्स का यह प्रथम पद्य लोगस्स - कल्प के अनुसार पूर्व दिशा में जिनमुद्रा में १४ दिन उसके बीज मंत्रों के साथ १०८ बार जपने का विधान मिलता है । इस प्रकार उसके उपसंहार रूप छठी गाथा बैठकर १०८ बार गिनने से एक प्रकार की अद्भुत शांति का अनुभव होता है । प्रयोग और परिणाम ५ मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं ऐं लोगस्स उज्जोयगरे धम्म तित्थयरे जिणे । अरहंते कित्तइस्सं चउविसंपि केवली मम मनोऽभीष्टं कुरु करु ॐ स्वाहा ॥ मंत्र संख्या प्रतिदिन एक माला प्रयोग विधि पूर्व दिशा की ओर मुख करके खड़ा रहकर १०८ बार कायोत्सर्ग में मंत्र का जप करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें। १५६ / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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