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________________ ट्रांजिस्टर था जिसका काम यह था कि आदेश कर्त्ता की ध्वनि को एक निश्चित फ्रीक्वेन्सी पर विद्युत शक्ति के द्वारा कार में 'डेस- बोर्ड' के नीचे लगे नियंत्रण कक्ष तक पहुँचा दे। उसके आगे 'कार - रेडियों' नाम का एक दूसरा यंत्र लगा हुआ था । इस यंत्र से जब विद्युत चुम्बकीय तरंगें टकराती तो कार के सभी पुर्जे अपने आप संचालित होने लगते हैं। लोगों ने इसे चमत्कार की संज्ञा दी परन्तु यह वास्तव में शब्द शक्ति का विकसित हैं प्रयोग था जिसे आधुनिक विज्ञान के सिद्धान्तों का आधार प्राप्त था। इस प्रकार ओर भी कई आधुनिक विज्ञान के प्रयोग शब्द शक्ति के संबंध में हैं जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर प्राचीन शास्त्रों में वर्णित ' शब्द - शक्ति' का समर्थन करते हैं । प्राचीन मान्यता ऐसी है कि देवताओं के विमान मंत्र की शक्ति से चलते थे इंजिन की शक्ति से नहीं । जैन आगमों में विश्लेषित अवस्थित नामक घंटा एक स्थान पर बजता है, उसकी ध्वनि से प्रकंपित होकर दूर-दूर तक हजारों लाखों घंटे बज़ उठते हैं अतः आज ध्वनि विज्ञान महानतम उपलब्धि माना जाता है । अतएव यह बात समझ में आती है कि मंत्र की शक्ति से कार्य का होना कोई असंगत बात नहीं है 1 कुछ अनुसंधानों के आधार पर निष्कर्ष निकलता है कि सिंह में अग्नि तत्त्व की प्रधानता होने के कारण वह मांस भक्षी होता है और गाय में पृथ्वी तत्त्व की प्रधानता होने के कारण वह मांस भक्षी नहीं है । ! शब्द विज्ञान सिद्ध करता है कि 'खं' शब्द का जप करने से आकाश तत्त्व की अभिवृद्धि होने के कारण कौटुम्बिक - कलह - संघर्ष में शांति लाई जा सकती है । इसका कारण है शरीर में तत्त्वों की सजातीयता होती है तो पराये भी अपने बन जाते हैं और विजातीयता होती है तो सहोदर भी शत्रु बन जाते हैं । एक अन्य शोध के अनुसार 'बं' का सवा लाख उच्चारण करने से जोड़ों का दर्द, वमन, कफ, गैस डाइबिटिज आदि बीमारियों से मुक्ति पाने में सहारा मिलता है 1 ला ला...के उच्चारण में गठिया रोग निवारण की अद्भुत क्षमता पाई गई है। इसी प्रकार ‘सं' ध्वनि अथवा 'हूँ' ध्वनि से लीवर की स्वस्थता, 'हां' ध्वनि से फेफड़ों की स्वस्थता, 'हैं' ध्वनि से कण्ठ की स्वस्थता, 'हः' ध्वनि से मस्तिष्क की स्वस्थता तथा स्मरण शक्ति का विकास होता है । 'ह्रीं' ध्वनि से ( दर्शन - केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर) दर्शन विशुद्धि के साथ-साथ प्रभावशाली आभामंडल का निर्माण होता है । आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने एक जगह लिखा है लं...लं...लं यह
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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