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________________ पांच व्यक्ति स्वयं को तीर्थंकर कहते थे परन्तु वे अन्य निम्नोक्त विशेषताओं से अभिमंडित नहीं थे । इसलिए 'लोगस्स स्तव' में चौबीस ही केवलज्ञानी अर्हतों का कीर्तन करूंगा - ऐसा कहकर उनकी स्वरूपगत प्रमुख विशेषताएँ जो अन्यत्र नहीं हैं, को उजागर किया गया है जो लोगस्स के प्रथम पद्य में निम्न प्रकार से विश्लेषित हैं १. लोगस्स उज्जोयगरे - लोक के उद्योतकर धर्म तीर्थंकर धम्म तित्य लोगस्स उज्जोयगरे, धम्म तित्ययरे जिणे । अरहंते कित्तइस्सं, चउविसंपि केवली ॥ २. ३. जिणे - जिन - अरिहंत - केवलज्ञानी ४. अरहंते ५. केवली उपरोक्त क्रम भी रहस्यात्मक है । एक ही व्यक्ति में पांचों विशेषणों का युगपत् होना जरूरी है। इसमें प्रथम विशेषण लोक के उद्योतकर दिया गया है। लोक के उद्योतकर अवधि ज्ञानी, विभंग ज्ञानी, चन्द्र, सूर्य आदि भी होते हैं अतएव उनकी निवृत्ति हेतु धम्म तित्थयरे पद का महत्त्व है। नदी तालाब आदि जलाशयों में उतरने के निमित्त धर्मार्थ तीर्थ (घाट) बनाने वाले भी धर्म - तीर्थंकर कहला सकते हैं । यहाँ उनका ग्रहण न हो इसलिए लोगस्स उज्जोयगरे विशेषण दिया गया है। लोक के उद्योतकर तथा धर्म तीर्थंकर अन्य ज्ञानी भी हो सकते हैं जैसा कि कतिपय शास्त्रों में कहा गया है- “धर्म तीर्थ को करने वाले धर्म तीर्थ की हानि देखकर परमपद पर आरूढ़ होकर पुनः संसार में लौट आते हैं, उन सबके निवृत्यार्थ 'जिणे' विशेषण दिया गया है। क्योंकि रागादि शत्रुओं को जीते बिना कर्म - बीज का क्षय नहीं होता और कर्म - बीज का क्षय हुए बिना भव रूपी अंकुर का नाश नहीं होता। इसलिए 'जिणे' कहकर अन्य जिन कहलाने वाले तथा श्रुत जिन, अवधि जिन, मनः पर्यव ज्ञानी जिन और छद्मस्त वीतरागों की निवृत्ति की गई है। उपर्युक्त सब विशेषणों से युक्त आत्मा अर्हत् ही हो सकती हैं। इससे आगे 'अरहंते' शब्द जो देव (देवाधिदेव) विशेष्य वाचक है । केवलज्ञान होने के पश्चात ही तीर्थंकर धर्म तीर्थ के प्रवर्त्तक होते हैं, छदमस्थ अवस्था में नहीं । इस तथ्य को दर्शित करने हेतु 'केवली' विशेषण की महत्ता स्वयंसिद्ध है । उपरोक्त स्वयंभूत विशेषणों को विस्तार पूर्वक समझे बिना तीर्थंकरों के स्वरूप का अवगाहन अधूरा ही रह जाता है अतएव प्रत्येक विशेषण की चुंबक रूप में व्याख्या अपेक्षित एवं मननीय है । इस अध्याय में केवल 'लोगस्स उज्जोयगरे' इस एक चरण को ही व्याख्यायित किया जा रहा है । १२६ / लोगस्स - एक साधना - १ ―
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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