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________________ आचार्य श्री महाश्रमणजी ने लिखा है- " वीतराग की साधना कषाय विजय की साधना है, एक शब्द में कषाय, दो शब्दों में राग-द्वेष, चार शब्दों में क्रोध, मान, माया, लोभ को जीतना मोह विजय और वीतरागता है ।" किसी उर्दू शायर की निम्नोक्त पंक्तियों में भी इस सत्य को खोजा जा सकता है खुदा की तस्वीर दिल के आइने में है । जब चाहो गर्दन झुका कर देख लो ॥ यद्यपि वीतराग परमात्मा की अनुत्तरता निर्बन्ध और शब्दातीत है फिर भी भक्त अपनी कर्म निर्जरा के साथ-साथ अपने मन को प्राञ्जल, परिमार्जित और निर्मल बनाने हेतु अपने भावों और शब्दों को स्तुतियों या मंत्रों के चौखट में बांधकर अपनी वाणी को मुखर करता है। यह विज्ञान सिद्ध निर्विवाद तथ्य है कि शब्द में अपरिमेय और अचिन्त्य शक्ति विद्यमान रहती है । कहा जाता है कि शंख ध्वनि से २२०० फीट क्षेत्र प्रदूषण मुक्त हो जाता है। तीर्थंकरों की देशना (प्रवचन). से छह माह तक बारह योजन की दूरी में अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी आदि प्राकृतिक प्रकोप तथा बीमारियां नहीं होती हैं । आज तो ध्वनि तरंगों की बात को गहराई से जाना जा सकता है। कहते हैं कि एक प्रकार की ध्वनि के कारण कोणार्क के मंदिर में दरारें पड़नी शुरू हो गई हैं। रेडियो ऊर्जा से न केवल हमारी धरती पर दूर-दूर की आवाज़ों को सुना जा सकता है पर दूसरे ग्रहों-उपग्रहों तक संप्रेषित कर उनके रहस्यों को भी अनावृत्त किया जा सकता है। मनुष्य के शरीर और मन पर भी ध्वनि का गहरा प्रभाव पड़ता है । इसी परिप्रेक्ष्य में मंत्र शास्त्र का अध्ययन यह निष्कर्ष देता है कि मंत्रों के शब्द संयोजन के वैशिष्ट्य से ही सामर्थ्य उद्भूत होता है । वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर स्वयं न शुभ होता है और न ही अशुभ किंतु उसमें शुचिता एवं अशुचिता विरोधी एवं अविरोधी वर्णों के योग से आती है। बीजाक्षरों में उपकारक एवं दग्धाक्षरों में घातक शक्ति निहित होती है । शब्दों के ध्वन्यात्मक प्रभावों की तरह उनके वर्ण समूहात्मक प्रभाव को भी विभिन्न अनुभव क्षेत्रों में प्रत्यक्ष होते पाया गया है। यद्यपि सब अक्षरों में मंत्र बनने का सामर्थ्य है किंतु उनका उचित संयोजन करने वाला मंत्रवेत्ता दुर्लभ होता है । अमंत्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम् । अयोग्यः पुरुषो नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभः ॥ मंत्र में प्रायोजित अक्षर वर्ण अथवा उसके समूहात्मक शब्दों का संयोजन मात्र ही कार्य साधक शक्ति हो, केवल ऐसी बात भी नहीं है । इनमें समानान्तर
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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