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________________ सिद्ध में चौदहवें गुणस्थान वर्ती अर्हतों का समावेश है तथा भाषक सिद्ध में तेरहवें गुणस्थान वर्ती अर्हतों का समावेश है, इस दृष्टि से भी उन्हें सिद्ध कहना निर्विवाद निष्कर्ष उपास्य की भव्यता, उदात्तता और शब्द ग्राह्यता को जानकर भक्त प्रभु के चरणों में सब कुछ समर्पण कर देता है। समर्पण के होते ही महाशक्ति का आविर्भाव भक्त हृदय में होने लगता है। महामनस्वी आचार्य महाप्रज्ञजी लिखते हैं जब तक भेद रेखा/भेद प्रणिधान रहता है तब तक शक्ति पर प्रश्न चिह्न बना रहता है। जब अभेद प्रणिधान हो जाता है, तब शक्ति अपने आप जाग जाती है। . जब हम लोगस्स साधना को मंत्राक्षर के रूप में स्वाध्याय व ध्यान का विषय बनाते हैं तो उसको एकाग्र होकर दर्शन-केन्द्र में पहुँचाना होता है। क्योंकि मंत्र की वास्तविक परिणति का मूर्धन्य परिणाम तब आता है जब कण्ठ की क्रिया समाप्त हो जाती है। तब मंत्र हमारे दर्शन-केन्द्र में पहुँच जाता है। यह मानसिक क्रिया है। जब मंत्र की मानसिक क्रिया होती है, मानसिक जप होता है तब न कण्ठ की क्रिया होती है न जीभ हिलती है, न होंठ और दांत ही हिलते हैं। स्वर यंत्र का कोई प्रकंपन नहीं होता...। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अपनी अनुभव पूरित भाषा में लिखा है-जो व्यक्ति मंत्र का मानसिक अभ्यास करना चाहे वे अपनी आँखों की कीकी को थोड़ा ऊपर उठाएं, भृकुटि को भी ऊपर उठाएं, मन की पूरी शक्ति को दर्शन-केन्द्र पर केन्द्रित करें और इसी स्थान से मंत्र का जप चले। उच्चारण नहीं केवल मंत्र का दर्शन, मंत्र का साक्षात्कार, मंत्र का प्रत्यक्षीकरण...। मंत्र इस भूमिका तक पहुँचकर ही कृतकृत्य होता है ।२० मंत्र साक्षात्कार के निम्न लक्षण हैं। १. तेजः परमाणुओं का ग्रहण अथवा ज्योति का आभास २. मंत्र के अक्षर और शब्द मनस की धारा में प्रवाहित होने लगे ३. मन के संकल्प-विकल्पों की उपशांति ४. मानसिक और वाचिक स्थिरता ५. मंत्र की आत्मा-भावों की धारा में प्रवाह निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि भीतरी शक्ति को जगाने के लिए हर व्यक्ति को आलंबन की अपेक्षा रहती है। शरण व्यक्ति की विचारधारा को स्वस्थ बनाती है। वह कठिन से कठिन समय में शांति का अनुभव कराती है। यह x लोगस्स स्वरूप मीमांसा / १२३ ।
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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