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________________ प्रार्थना उचित ही है। क्योंकि अर्हत् सिद्ध कुछ भी न देखें पर भक्तिमान भव्यों की अपनी अटल भक्ति के कारण प्रार्थना के अनुसार फल हो जाता है। यह प्रार्थना मोक्ष प्राप्ति के लिए है अतः इसे निदान सहित नहीं कह सकते हैं। जिस प्रकार अंजन नहीं जानता कि मैं आँख की ज्योति बढ़ाऊं पर उसे आंजने से नेत्र ज्योति स्वतः बढ़ती है वैसे ही निस्पृह, निष्काम, वीतराग परमात्मा के स्तवन से स्वतः लाभ होता है। क्योंकि बार-बार अर्हत् स्तवन से कर्म मल दूर होते हैं। कर्मफलों का अपनयन होने से भाव निर्मल बनते हैं और निर्मल भावों से ही गुणों की प्राप्ति संभव है। निर्मल भावों का आरोग्य, बोधि और समाधि के साथ घनिष्ठ संबंध है। समाधि का सामान्य अर्थ है-चित्त की एकाग्रता। यह समाधि मनुष्य का अभ्युदय कर अन्तरात्मा को पवित्र बनाती है एवं सुख-दुःख तथा हर्ष-शोक आदि प्रसंगों में शांत व स्थिर रखती है। सर्वोत्कृष्ट समाधि दशा पर पहुँचने के पश्चात आत्मा का पतन नहीं होता। सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ___ इसी प्रकार सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु कहने से सिद्ध भगवान हमें सिद्धि नहीं देते पर यह स्तुत्य के गुणों को अपने में धारण करने की प्रक्रिया है। यह कामना सिद्धि का मंत्र है। नमस्कार महामंत्र में पांचों तत्त्व हैं। पूरा स्वर योग महामंत्र के दो ही पदों ‘णमो सिद्धाणं' और 'णमो उवज्झायाणं' में समाहित हो जाता है। यदि व्यक्ति में उत्साहहीनता है तो ‘णमो सिद्धाणं' का जप एकाग्रता से करने पर उत्साह तो बढ़ता ही है पर साथ-साथ में रक्त का हीमोग्लोबीन' भी बढ़ जाता है। यदि शरीर में उष्मा का प्रकोप है तो णमो उवज्झायाणं पद का जप या ध्यान करने से शरीर में शीतलता व्याप्त होती है। मन, मस्तिष्क, शरीर सभी शीतल हो जाते हैं तथा परिश्रम से हुई थकावट भी दूर हो जाती है।१२ । ___जिस प्रकार चिंतामणि रत्न से वांछित फल की प्राप्ति होती है उसी प्रकार अर्हतों व सिद्धों का ध्यान, गुण स्मरण, कीर्तन तथा वंदन करने से चित्त शुद्धि के द्वारा अभिलक्षित फल की प्राप्ति होती है। सिद्ध भगवन्तों के ध्यान से मुख्यतः उनके आनंदमय, आरोग्यमय, अव्याबाध (बाधा रहित) स्वरूप का चिंतन किया जाता है। इस चिंतन से आनंद प्राप्ति के साथ-साथ सर्व रोग, बाधाएं दूर होकर कार्य सिद्धि की क्षमता का विकास होता है। अनुभव गम्य है कि इक्कीस बार सिद्ध प्रभु का स्मरण करने से अथवा 'सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु'-इस मंत्र पद का स्मरण करने से प्रायः कार्य निर्विघ्न और सानंद होता है। 'सिद्ध' भगवान का स्मरण विघ्न-विनाशक, सिद्धि दायक, सफलता १२० / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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