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________________ हैं तब लोकान्तिक देव आकर उनके विरक्त होने की सराहना करते हैं। उसके बाद तीर्थंकर एक वर्ष तक वर्षीदान देते हैं। कर्मभूमि से दीक्षित होने वाले सभी तीर्थंकरों के लिए सौधर्मेन्द्र द्वारा दीक्षा के एक वर्ष पूर्व वर्षीदान की व्यवस्था की जाती है। वर्षीदान के प्रभाव से बारह वर्षों तक इन्द्रों में परस्पर संघर्ष नहीं होता। चक्रवर्ती का भंडार अक्षय रहता है। श्रेष्ठी लोगों की कीर्ति इस धन के प्रभाव से बढ़ती है। बीमार स्वस्थ हो जाते हैं तथा बारह वर्षों तक इस धन के प्रभाव से घर में बीमारी नहीं आती। बीमार बच्चे स्वस्थ रहते हैं ऐसी और भी कुछ धारणाएँ प्रचलित हैं। एक वर्ष पश्चात पुनः लोकान्तिक देव उपस्थित होते हैं और जिनका जीत आचार अर्थात् कर्मभूमि के सभी भावी तीर्थंकरों को तीर्थ प्रवर्तन की प्रेरणा देना है। उसी विधि का अनुसरण करते हुए कहते हैं अरहा बुज्झह बुज्झह - जागों, भन्ते! जागों अरहा अट्ठाहि अट्ठाहि - उठो, प्रभो! उठो अरहा पवट्ठाहि पवट्ठाहि - प्रस्थान करो, प्रभो! प्रस्थान करो। -प्रभो! आपकी जय हो, विजय हो! अब आप तीर्थ का प्रवर्तन करो। सबका कल्याण हो, मंगल हो। __शुभ समय में तीर्थंकर अपने नगर के निकट उद्यान में दीक्षा हेतु अभिनिष्क्रमण करते हैं। अपूर्व समारोह मनाया जाता है। तीर्थंकर पालकी में बैठते हैं। पालकी को पहले तो राजा, महाराजा उठाते हैं फिर देव अपने कंधों पर ले जाते हैं। उद्यान में पहुंचकर तीर्थंकर अपने हाथ से केशों का पंचमुष्ठि लुञ्चन करते हैं, सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार कर यावज्जीवन सावध योग का प्रत्याख्यान अर्थात् दीक्षा स्वीकार कर लेते हैं। दीक्षा संस्कार के साथ ही वे कुछ विशेष अभिग्रह (संकल्प) स्वीकार करते हैं। "मैं केवल ज्ञान प्राप्ति तक व्युत्सृष्ट देह रहूँगा। यानि देव, मनुष्य तथा तिर्यञ्च (पशु जगत्) की ओर से जो भी उपसर्ग उत्पन्न होंगे, उनको समता भाव से सहन करूंगा। ४. केवलज्ञान कल्याणक दीक्षित होने के बाद कठोर तपस्या, ध्यान तथा परिषहों को सहन करते-करते चार घनघाती कर्म क्षय होने से तीर्थंकरों को अपूर्व ज्ञान की प्राप्ति होती है, उसे केवलज्ञान कहते हैं। केवलज्ञान प्राप्ति से पूर्व तीर्थंकर धर्म देशना नहीं देते, तपस्या व साधना में लीन रहते हैं। केवलज्ञान की प्राप्ति के समय जो समारोह मनाया जाता है, देवों द्वारा, उसे केवलज्ञान कल्याणक कहते हैं। केवल्य प्राप्ति के पश्चात ११६ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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