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________________ लोकोत्तर होने का प्रमुख कारण है-इस महामंत्र के अधिनायकों की परम विशुद्धि। क्योंकि सरागी की शक्ति कितनी ही अधिक क्यों न हो, तो भी वीतराग की अचिन्त्य शक्तिमत्ता और प्रभावशीलता रूप सागर के सम्मुख वह एक बिंदु जितनी भी नहीं होती है। निस्संदेह कामकुंभ, कल्पतरु, कामधेनू और चिन्तामणि रत्न से भी अधिक मनवांछित फल देने वाली यह महाशक्ति है। शक्ति विस्फोट की दृष्टि से अणुबम, हाइड्रोजन बम एवं परमाणु बम से भी यह महामंत्र अधिक शक्तिशाली है। क्योंकि यह आत्मा के असंख्य प्रदेशों में व्याप्त कर्मों की निर्जरा कर उन्हें सर्वथा विनिष्ट करने की अद्भुत क्षमता रखता है। भव्य आत्मा के भव रोग को सदा-सर्वदा के लिए दूर करने हेतु यह लोगस्स महासूत्र धन्वन्तरी वैद्य के समान है। आभ्यन्तर स्वरूप लोगस्स के पाठ में तीर्थंकरों का स्वरूप सूत्र रूप में वर्णित किया गया है। जब इसके अर्थदेह अर्थात् आभ्यन्तर स्वरूप में अवगाहन करते हैं तो सभी अर्हतों के गर्भ प्रवेश से लेकर मोक्ष प्राप्ति तक के तीर्थंकर जीवन की कुछ घटनाओं का परम्परागत विवरण विस्तार से मिलता है, जो सभी अर्हतों के जीवन में समान रूप से बताया गया है। सामान्यतः अर्हतों के स्वरूप को दो भागों में बांटा गया है1. बाह्य 2. आन्तरिक अर्हतों के अतिशय और प्रातिहार्य को बाह्य गुण और अनंत-ज्ञान, अनंत-दर्शन, अनंत-चारित्र तथा अनंत-वीर्य को आभ्यन्तर/आन्तरिक गुण माना है। अतिशय प्रमुख रूप से चार विभागों में विभक्त हैं:१. अपायापगमातिशय २. वचनातिशय ३. पूजातिशय ४. ज्ञानातिशय १. अपायापगमातिशय-स्वयं और पर के आश्रित (स्वाश्रयी और पराश्रयी) उपद्रव, रोगों, आतंकों का नाश हो जाना। २. वचनातिशय--अर्हतों की वाणी ३५ गुणों से युक्त होती है, उसे देव, दावन, मनुष्य, पशु सभी अपनी-अपनी भाषा में समझ जाते हैं। ३. पूजातिशय-असुरों, देवों, पशुओं, मनुष्यों सभी के द्वारा पूजनीय होते हैं। ४. ज्ञानातिशय-अरिहंत सम्पूर्ण लोकालोक को हस्तामलक् की भांति जानते हैं। नोट-वैसे सामान्य रूप से अर्हतों के चौंतीस अतिशय माने जाते है। ११२ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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