SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लोगस्स के प्रत्येक पद्य में 'स' वर्ण कई बार प्रयुक्त है। इसके आराध्य अर्हत् व सिद्ध हैं। जिनमें सिद्ध में 'स' प्रयुक्त है ही और वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस अर्हतों में बारह अर्हतों के नामों में स वर्ण प्रयुक्त हैं - ऋषभ, संभव, सुमति, सुपार्श्व, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, शांति, मुनिसुव्रत, अरिष्टनेमि, पार्श्व। जब हम प्राकृत भाषा बोलते हैं तब सर्वत्र दन्त्य 'स' का ही प्रयोग होता है | लोगस्स के तीन नामों में से दो नामों में 'स' वर्ण है - चतुर्विंशति स्तव और लोगस्स । इसी संदर्भ में यदि 'रकार' का अवलोकन करें तो 'रकार' अग्नि के समान दीप्त तथा सब अक्षरों के सिर पर स्थित है । जिस देवता के नाम के मध्य में यह स्थित हो जाता है, तत्त्वदर्शियों का यह कथन है कि यह पूजनीय रकार तद्नुरूप पुण्य, पवित्र, मांगलिक सिद्ध होता है । इसलिए राम, हरि, हर, पीर, पार्श्व, वर्धमान आदि शक्ति संपन्न नामों में 'र' का अस्तित्त्व विद्यमान है । लोगस्स में सोलह बार अपने योजक शब्दों के साथ 'र' का प्रयोग शक्ति जागरण का अनूठा प्रयोग कहा जा सकता है। लोगस्स में जिन अर्हतों की स्तुति की गई है उनके भी सात नामों में रकार स्थित है । लोगस्स -दो घटना प्रसंग " 1 घटना प्रसंग लगभग ५०-६० वर्षों पूर्व का है। टोहाना में मुनि छगनलालजी का चातुर्मास था। उन्होंने व्याख्यान में एक अद्भूत घटना सुनाई। इंदौर निवासी लाला हुकमचंद ने अपने पुत्र का विवाह किया परन्तु जब वधु उसके घर आई, तब से रात्रि के समय उसकी छत पर एक उल्लू बेठने लगा। तीन दिन उसके घर वधु रही, तीनों ही दिन उल्लू घर के ऊपर मुँडेर पर बैठकर बोलता रहा । वधु को भी चिंता सताने लगी । तीन दिन पश्चात जब वह अपने पीहर गई, सारा घटना प्रसंग अपनी माँ को कह सुनाया। माँ उसे एक जैन यति के पास ले गई । यतिजी ने उसे उपाय सुझाते हुए कहा - ससुराल जाने पर तुम प्रतिदिन 'लोगस्स' की एक माला फेरना । प्रत्येक अष्टमी, चतुर्दशी व पूर्णिमा को आयम्बिल तप करना । पूर्णिमा की रात्रि को वह उल्लू तुम्हारे सुसराल के मकान पर बैठेगा। तुम छत पर जाकर उसके मस्तक पर सिंदूर का तिलक कर देना। वह लोगस्स के प्रभाव के कारण वहीं बंधा हुआ बैठा रहेगा और तिलक करवा लेगा। जब तक वह न उड़े तुम लोगस्स का पाठ करते रहना। इसके पश्चात तुम्हारे सुसराल का घर धन धान्य से भरपूर हो जायेगा । उसने वैसा ही किया । साहस करके पूर्णिमा को रात्रि में उसने उल्लू के तिलक कर ही दिया। अगले दिन से ही चमत्कार होना प्रारंभ हो गया। अगले दिन लाला हुकमचन्द ने अपने पुराने मकान को गिराना शुरू किया। सायंकाल के समय उन्हें दीवार के नीचे एक स्वर्ण मुद्राओं से भरा हुआ घड़ा प्राप्त हुआ। उस धन से उन्होंने अपने व्यापार को आगे बढ़ाया और इंदौर का नामी सेठ बन गया । १०० / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy