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________________ भाव की तन्मयता के साथ लोगस्स को एक दिव्य आत्म-साधना के रूप में चेतन किया जा सकता है। सचमुच यह सत्यं शिवं व सुन्दरम् की ही साधना और उपासना है। संदर्भ १. मोक्षमाला - पृ. ७७, ७८ २. वीतराग वंदना विशेषांक - पृ. ७४ ३. ज्योति जले, मुक्ति मिले - पृ./२२५ ४. उत्तराध्ययन- २६/१० ५. आवश्यक - २ ६. जैन धर्म के साधन सूत्र - पृ./ ७. ८. ६. अनुयोग द्वार - ५६ १०. ११. तीसरी शक्ति - पृ. ४१ १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. महाप्रज्ञ का रचना संसार - पृ./ २६६ व्यवहार बोध (ध्रुवयोग) श्लोक / ३३ आवश्यक सूत्र, अनुयोग द्वार - ६० १६. २०. २१. अनुयोग द्वार चूर्णि पृ./१८, मूलाचार ५७१ नवकार सार स्तवन- १६-१८ आवश्यक सूत्र - मुनितोषणीय टीका का हिंदी अनुवाद, पृ./१४० भक्तामर - श्लोक / १८ वही - श्लोक / १७ अपने घर में - पृ. / २२६ वही - पृ./ २२६ वही - पृ. २२७ वही - पृ. / २२७ चौबीसी - १८/६ कल्याण मंदिर - श्लोक / ३८ ८८ / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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