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________________ भगवती सूत्र श. १३ : उ. ५,६ : सू. ९०-९६ विस्तीर्ण यावत् ऊपर ऊर्ध्वमुख मृदंग के आकार वाले लोक में उत्पन्न - ज्ञान दर्शन का धारक, अर्हत्, जिन, केवली, जीवों को भी जानता देखता है, अजीवों को भी जानता देखता है, उसके पश्चात् वह सिद्ध, प्रशांत, मुक्त, परिनिर्वृत होता है और सब दुःखों का अंत करता है । ९१. भंते ! इस अधो-लोक, तिर्यग्-लोक और ऊर्ध्व लोक में कौन किससे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! तिर्यग्- लोक सबसे अल्प है। ऊर्ध्व लोक उससे असंख्येय गुण अधिक है । अधो- लोक उससे विशेषाधिक है। ९२. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है । पांचवां उद्देशक आहार पद ९३. भंते ! क्या नैरयिक सचित्त आहार वाले हैं ? क्या अचित्त आहार वाले हैं ? क्या मिश्र आहारव ? गौतम ! सचित्त आहार वाले नहीं हैं, अचित्त आहार वाले हैं, मिश्र आहार वाले नहीं हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों की वक्तव्यता । प्रथम नैरयिक उद्देशक (पण्णवणा, २८ / १) निरवशेष वक्तव्य है । ९४. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है । छठा उद्देशक सान्तर - निरन्तर - उपपन्नादि - पद ९५. राजगृह नगर यावत् गौतम स्वामी इस प्रकार बोले- भंते! नैरयिक सांतर उपपन्न होते हैं ? निरंतर उपपन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिक सांतर उपपन्न होते हैं, निरंतर भी उपपन्न होते हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों की वक्तव्यता। इस प्रकार जैसे गांगेय ( भगवती, ९/८०-८५ ) की वक्तव्यता वैसे ही दो दण्डक यावत् वैमानिक सांतर भी च्यवन करते हैं, निरन्तर भी च्यवन करते हैं । चमरचंच आवास पद ९६. भंते ! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर का चमरचंच नामक आवास कहां प्रज्ञप्त है ? गौतम ! जंबूद्वीप द्वीप में मेरूपर्वत से दक्षिण भाग में तिरछे असंख्य द्वीप - समुद्रों के पार चले जाने पर इस प्रकार जैसे द्वितीय शतक (भ. २ / ११८-१२१) में चमर सभा - उद्देशक की वक्तव्यता वही अपरिशेष ज्ञातव्य है । उस चमरचंचा राजधानी में दक्षिण-पश्चिम में अरुणोदय समुद्र में छह अरब पचपन करोड़ पैंतीस लाख पचास हजार योजन तिरछा चले जाने पर वहां असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर का चमरचंच नामक आवास प्रज्ञप्त है - उसकी पीठिका लंबाई-चौड़ाई में चौरासी हजार योजन और परिधि में दो लाख पैंसठ हजार छह सौ ५०८
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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