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________________ श. १३ : उ. ४ : सू. ६४-६८ भगवती सूत्र सात से। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है? अनंत से। शेष धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्यता। ६५. भंते ! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है? इसी प्रकार जीवास्तिकाय की भांति वक्तव्यता। ६६. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? गौतम ! जघन्य-पद में छह से, उत्कृष्ट-पद में बारह से। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों की वक्तव्यता। आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट हैं ? बारह से। शेष धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्यता। ६७. भंते! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? जघन्य-पद में आठ से, उत्कृष्ट-पद में सतरह से। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों की वक्तव्यता। आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ? सतरह से। शेष धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्यता। इस गमक के अनुसार यावत् दस तक की वक्तव्यता, इतना विशेष है- जघन्य-पद में दो का प्रक्षेप करणीय हैं, उत्कृष्ट-पद में पांच का। पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश जघन्य-पद में दस से, उत्कृष्ट-पद में बाईस से। पुद्गलास्तिकाय के पांच प्रदेश जघन्य पद में बारह से, उत्कृष्ट-पद में सत्ताईस से। पुद्गलास्तिकाय के छह प्रदेश जघन्य-पद मे चौदह से, उत्कृष्ट-पद में बत्तीस से। पद्गलास्तिकाय के सात प्रदेश जघन्य-पद में सोलह से, उत्कृष्ट-पद में सैंतीस से। पुद्गलास्तिकाय के आठ प्रदेश जघन्य-पद में अठारह से, उत्कृष्ट-पद में बयांलीस से। पुद्गलास्तिकाय के नौ प्रदेश जघन्य-पद में बीस से, उत्कृष्ट-पद में सैंतालीस में। पुद्गलास्तिकाय के दस प्रदेश जघन्य-पद में बाईस से, उत्कृष्ट-पद में बावन से। आकाशास्तिकाय सर्वत्र उत्कृष्टतः वक्तव्य है। ६८. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के संख्येय प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? जघन्य-पद में उसी संख्येय से। दो अधिक द्विगुण संख्येय से। उत्कृष्ट-पद मे उसी संख्येय से दो अधिक पंच गुणित संख्येय से। कितने अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ? पूर्ववत्। आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ? उसी संख्येय से दो अधिक पंच गुणित संख्येय से। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? ५०२
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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