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________________ भगवती सूत्र श. १२ : उ. ९ : सू. १८५-१९२ गौतम ! नैरयिकों में उपपन्न नहीं होते, तिर्यग्योनिकों में उपपन्न नहीं होते, मनुष्यों में उपपन्न नहीं होते, देवों में उपपन्न होते हैं। यदि देवों में उपपन्न होते हैं? सब देवों में उपपन्न होते हैं यावत् सर्वार्थसिद्ध-देवों में उपपन्न होते हैं । १८६. भंते! नर-देव अनंतर उद्वर्तन कर-पृच्छा। . गौतम! नैरयिकों में उपपन्न होते हैं। तिर्यग्योनिकों, मनुष्यों और देवों में उपपन्न नहीं होते। यदि नैरयिकों में उपपन्न होते हैं तो? सातों पृथ्वियों में उपपन्न होते हैं। १८७. भंते! धर्म-देव अनंतर उद्वर्तन कर–पृच्छा। गौतम ! नैरयिकों में उपपन्न नहीं होते, तिर्यग्योनिकों और मनुष्यों में उपपन्न नहीं होते। देवों में उपपन्न होते हैं। १८८. यदि देवों में उपपन्न होते हैं तो क्या भवनवासी-देवों में उपपन्न होते हैं ?- पृच्छा। गौतम ! भवनवासी-देवों में उपपन्न नहीं होते, वाणमन्तर-देवों में उपपन्न नहीं होते, ज्योतिष्क-देवों में उपपन्न नहीं होते, वैमानिक-देवों में उपपन्न होते हैं। सर्व वैमानिक-देवों में उपपन्न होते हैं यावत् सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक वैमानिक-देवों में उपपन्न होते हैं । उनमें कुछ धर्म-देव सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। १८९. देवातिदेव अनन्तर उद्वर्तन कर कहां जाते हैं? कहां उपपन्न होते हैं? गौतम! सिद्ध हो जाते हैं यावत् सर्व दुःखों का अंत करते हैं। १९०. भंते ! भाव-देव अनन्तर उद्वर्तन कर-पृच्छा । जैसे-पण्णवणा के अवक्रांति पद (६/१०१-१०२) में असुरकुमार-देवों का उद्वर्तन वक्तव्य है वैसे ही यहां वक्तव्य है। पंचविध-देवों का संस्थिति-पद १९१. भंते ! भव्य-द्रव्य-देव भव्य-द्रव्य-देव के रूप में कितने काल तक रहता है। गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्टतः तीन पल्योपम। इसी प्रकार जो भव-स्थिति बतलाई गई है, वही उनका संस्थान-काल है। यह नियम नर-देव, देवातिदेव और भाव-देव-सबके लिए समान है। केवल धर्म-देव इसका अपवाद है। उसका संस्थान-काल जघन्यतः एक समय उत्कृष्टतः कुछ कम पूर्व -कोटि है। पंचविध-देवों का अन्तर-पद १९२. भंते ! भव्य-द्रव्य-देव का अन्तर-काल कितना होता है? ४७९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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