SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 584
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | शुद्ध 9 9 9 पृष्ठ पृष्ठ | सूत्र | पंक्ति अशुद्ध शतक ३९ ९३७ / १ शीर्षक आदि-पद ९३७ | १३.२-३, कृतयुग्म-कृतयुग्म (वैसा आदि का पद (कृतयुग्म-कृतयुग्म-) पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध | १ | १ कृतयुग्म (कृतयुग्म१ | २ |-जीवों का -जीवों का) १ | ३ बतलाया (बतलाया चाहिए। चाहिए)। | इन जीवों का (इन जीवों का) (एक जीव जीव) बतलाया (बतलाया चाहिए। इन जीवों की (चाहिए)। (इन जीवों की) बतलाया गया है (बतलाया गया है) बतलाना चाहिए, बतलाना चाहिए), इन जीवों के (इन जीवों के) इनमें (इनमें) ,, ९-११ ये जीव (ये जीव) | १ | अपेक्षा से कितने अपेक्षा कितने २ वे कृतयुग्म (वे कृतयुग्म ., अपेक्षा से जघन्यतः अपेक्षा) जघन्यतः ३ तक रहते हैं। उनकी (तक रहते हैं)। (उनकी) ४ की है। वे है। (वे) | इन जीवों के (इन जीवों के) ५,६ बतलाना चाहिए (बतलाना चाहिए) ६ ।'अनन्त बार' तक। (भ. ३५/२३) अनन्त बार (भ. ३५/२३)। इसी 22:2AMMAR पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध शुद्ध | ७ | ३ |चाहिए. (जैसा भ. चाहिए जैसा भ. ७ | ४ | इन जीवों में (इन जीवों में) ७ | ४ | वैसा ५ चाहिए चाहिए) ५,६ -जीवों का बतलाया गया है। -जीवों का (भ. ३५/४४-४७) (भ. ३५/४४-४७) (बतलाया गया है)। | १ | कृतयुग्म-कृतयुग्म (-कृतयुग्म-कृतयुग्म८.९ १ |-जीवों ८१.२ (ग्यारह उद्देशक संयुक्त) (ग्यारह-उद्देशक-संयुक्त) २ बतलाना चाहिए (बतलाना चाहिए) १,२ | (ग्यारह उद्देशक संयुक्त) (ग्यारह-उद्देशक-संयुक्त) १ | जीव (कहां से जीव० (कहां से २ | हैं........(पृच्छा)? | २ |-कृतयुग्म-कृतयुग्म (-कृतयुग्म-कृतयुग्म१० | २ |-जीवों के विषय में -जीवों) के (विषय में) | ३ | पूर्वगमक में बतलाये गये हैं (भ. पूर्वगमक (भ. ३५/५९-६७) में ३५/५७-६७) बतलाये गये हैं, | सत्त्व) सत्त्व).? पृच्छा?) ५-६ | यहां बतलाने चाहिए (यहां) (बतलाने चाहिए) |-कृतयुग्म-कृतयुग्म (-कृतयुग्म-कृतयुग्म |-जीवों) | २ | बतलाये गये हैं (भ. ३५/६६), (भ. ३५/६६) (बतलाये गये हैं), ३ | विषय में | (विषय में) १२ ३-४ | इन सभी (अभव्य) जीवों में (इन) सभी (अभव्य जीवों) में समझना चाहिए (समझना चाहिए) १२ | ५ | शतक द्वीन्द्रिय-महायुग्मों के विषय में द्वीन्द्रिय-महायुग्म-शतक शतक ३७ ९३५/ १ शीर्षक | आदि-पद आदि का पद १ | २ | कृतयुग्म कृतयुग्म-त्रीन्द्रिय-जीवों के (कृतयुग्म-कृतयुग्म-) त्रीन्द्रिय-जीवों | विषय में (के विषय) में | ३ | बतलाने चाहिए, करने चाहिए, | ३,४ | इन जीवों की (इन जीवों की) अंगुल का असंख्यातवां भाग । | अंगुल-का-असंख्यातावां-भाग ५ समझना चाहिए। (भ. ३६/२) |(भ. ३६/२) (समझना चाहिए)। शतक ३८ १ शीर्षक आदि-पद आदि का पद १ बतलाने चाहिए, करने चाहिए, १ | २,३ | इन जीवों की (इन जीवों की) | ४ | कृतयुग्म-कृतयुग्म (कृतयुग्म-कृतयुग्म) विषय में (विषय में चाहिए। चाहिए)। -जीवों इसी | समय- उद्देशक बतलाया चाहिए बतलाने चाहिए, जो वहां बतलाये गये थे। | प्रथम |-जीव ६ -जीवों का बतलाया गया है | चाहिए १ बतलाये गये थे | २ | वैसे ही १ २,३ विषय में (विषय में) २ शतक बतलाये गये शतक (३६/१-१०)(बतलाये गये) ४,६ इन जीवों की (इन जीवों की) ५ इन जीवों का (इन जीवों का) ७ बतलाया (बतलाया ७ है वैसा है (भ. ३६/२-१०) वैसा ८ चाहिए। चाहिए। शतक ४० १ शीर्षक आदि-पद आदि का पद | १ | १ हैं....? इन जीवों में उत्पात हैं०? (इन जीवों का) उपपात | २ होता है। इनमें (होता है)। (इनमें | २ जीव जीव) ३ है और हैं और विमानों से विमानों तक (से होते हैं । इन जीवों का होते हैं)। (इन जीवों का) कृतयुग्म-कृतयुग्म (कृतयुग्म-कृतयुग्म-) ६ की बतलाई की (भ. ३९/१ में) (बतलाई ६ चाहिए। चाहिए। १६-१९ ये जीव (ये जीव) ., १० हैं असात हैं, असात | १० | इन जीवों के (इन जीवों के) होते है? होते हैं? वे जीव (वे जीव) |कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-(-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञि-पंचेन्द्रिय जीव ) जीव २ क्या (अथवा) कृतयुग्म (कृतयुग्म|-जीव -जीव) ये जीव। (ये जीव) है । वे जीव है। ये जीव १२ ग्रहण करते हैं। (ग्रहण करते हैं)। १२ इन जीवों की (इन जीवों की) ९३९ १३ | इन जीवों के (इन जीवों के) १४ नोसंज्ञी नोसंज्ञी नोसंज्ञि-नोअसंज्ञी ९३९ १५ इन जीवों से (इन जीवों से) ९३९ १६ उपपात बतलाया गया है (भ. ४०/ उपपात (भ. ४०/१ में) (बतलाया गया है) | १७ | 'अनुत्तर-विमान' अनुत्तर-विमान १ प्राण यावत् प्राण (भ. ३५/१२) यावत् समय-उद्देशक (बतलाया चाहिए) (बतलाने चाहिए) जो दशनानात्व (वहां बतलाये गये थे)। (प्रथम -जीव) -जीवों के में (बतलाया गया है चाहिए) (बतलाये गये थे) वैसे ही कृतयुग्म-कृतयुग्म-द्वीन्द्रियजीवों के विषय में) (इन जीवों में) (यहां बतलाने चाहिए) (भ. ३६/४) बतलाना चाहिए। कृष्णलेश्य (-कृतयुग्मविषय) ग्यारह-उद्देशक-संयुक्त (उसी १९३९ २-३ | इन जीवों में यहां बतलाने चाहिए २ बतलाना चाहिए। (भ. ३६/४) २ कृष्णलेश्य-कृतयुग्म२ | विषय ३ म्यारह उद्देशक संयुक्त ३ | उसी
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy