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________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति ८८६ ८८६ ८८६ ८८६ " ८८६ " " " " ८८८ ८८८ **:*:** - 3 3 3 3 3 3 3 3 3 ⠀⠀ ⠀ ⠀⠀⠀⠀ ८८८ " ८८८ अशुद्ध शुद्ध २९ ३१-३२ जीवों के विषय में बताया गया वैसे ही जीव बताए गए वैसे ही शेष शेष सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की भांति ३३ जीवों की तरह ८८७ ३३,३४ " **** *** " २९ ८८८ ८८८ ३० ३० २८ " "} " ३२ ३३ ३३ ३४ " " " MY १ " १ २ 2 = % 2 ==== 20 = = = 20 20 10 10 २ ३४ ९,१० (समुच्चय) यावत् ३ द्वारा कृष्णपाक्षिक जीव तीनों २९ " ८८८ सर्वत्र १ / २ .....पृच्छा । २ २ २ १२. ३४ २३ -संज्ञोपयुक्त जीवों की २१ स्तनितकुमार दोनों तक १९ ३४ २४ २६ ३ " ६ २ 17 ४ भवसिद्धिक है ? क्रियावादी जीव है....... पृच्छा। अक्रियावादी जीव भी है। -जीव भी और वैनयिकवादी जीव भी समझने चाहिए। ६ g १ है.....? पृच्छा लेश्या युक्त क्रियावादी जीव हैं...... पृच्छा । लेश्या युक्त अक्रियावादी - जीव लेश्या रहित क्रियावादी जीव ३ " २ -जीवों तक -जीवों के विषय में भी हैं अभवसिद्धिक जीवों में गौतम! अनन्तर-नैरयिक जीव जीवों की भांति भवसिद्धिक हैं ? (क्रियावादी जीव) है-पृच्छा । (अक्रियावादी जीव) भी हैं। जीवों को भी और वैनयिकवादी जीवों को भी समझना चाहिए। है ? -पृच्छा । (लेश्या युक्त क्रियावादी जीव) है - पृच्छा। (लेश्या युक्त अक्रियावादी जीव) (लेश्या रहित क्रियावादी जीव) द्वारा तीनों (समुच्चय)- यावत् संज्ञोपयुक्त जीव स्तनितकुमार देवों तक -जीव -जीव भी हैं. अभवसिद्धिक जीव - पृच्छा । गौतम (अनन्तर -नैरयिक-जीव) क्रियावादी (क्रियावादी हैं.....? इसी प्रकार जानना चाहिए। हैं०? इसी प्रकार (जानना चाहिए)। क्रियावादीक्रियावादी -नैरयिक जीव जानना चाहिए। लेश्या युक्त क्रियावादीनैरयिक- जीव वैमानिक तक । अनाकारोपयुक्त तक वक्तव्य हैं। वैमानिक तक कियावादीक्रियावादी -नैरयिक- जीव अक्रियावादी -नैरयिक- जीव (नैरयिक- जीव) (वक्तव्य हैं)। (लेश्या युक्त क्रियावादी नैरयिक- जीव) वैमानिक ( वक्तव्य हैं) । अनाकारोपयुक्तों तक (वक्तव्य हैं)। वैमानिक क्रियावादी (क्रियावादी -नैरयिक जीव) (अक्रियावादी -नैरयिक जीव) पृष्ठ ८८८ " " ८८९ ४२ ८८९ "1 ८९० ARAR: ८९० सूत्र पंक्ति ८८९ ४४ " ८९० " ४१. ३ ४२ ८९१ " " " ८८९ ८८९ ४४. २ ८८९ ४४ ३ ୪୪ " ४४ ४६ " :::: " २ :::: " " ३ " ३ "" " Em m 8 ५ ५. ५ ३ " ५. ६ 9 0 2 2 ७ ९ २. ४.. ५. ७ m " २ ही परम्पर- उद्देशकों का एक ५ भी, और ६ अयोगी ये तीन १ ६. २ = m x " ३ ४ ५ १ २ अशुद्ध ज्ञातव्य हैं। लेश्या युक्त -नैरयिक जीव चाहिए, यावत् अनाकारोपयुक्त -देवों तक केवल इतना क्रियावादीहैं अभवसिद्धिक ....? बताया गया। -नैरयिक आदि जीवों के विषय में सम्पूर्ण रूप से संग्रहीत नैरयिक आदि जीवों है। 3 (एक, पांच, नौ १० है) यह इस तिर्यग्योनिक जीवों है..... पृच्छा । क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक- जीव के छट्ठे पद 'अवक्रान्ति' (सू. १७/ ८०) ४ अभवसिद्धिक जो-जो बोल बन्धि (जिन-जिन बोलों के विषय में) बन्धि-उद्देशक, इतना -उद्देशक तक, केवल इतना -उद्देशकों का एक ही गमक है। चारों (उद्देशकों) का भी एक ही गमक है, राजगृह नगर में यावत् कृतयुग्म (चार), त्र्योज (तीन), द्वापरयुग्म (दो), कल्योज (एक) । कृतयुग्म (तीन, (दा, इक्कतीसवां शतक हैं। वे जीव क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक जीव वे जीव ज्ञातव्य हैं)। (लेश्या युक्त (-नैरयिक-जीव) चाहिए यावत् अनाकारोपयुक्तों -देव (वक्तव्य हैं), इतना क्रियावादी हैं, अभवसिद्धिक है० ? (बताया गया) -नैरयिक आदि जीव निरवशेष से, इसी (भ. २५ / ६२० ) शुद्ध संगृहीत (नैरयिक आदि जीवों है) । - अभवसिद्धिक चारों ही परम्पर (उद्देशकों) का भी एक भा, अयोगी-ये तीन राजगृह में (भ. १/४-१०) यावत् कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म, कल्योज । कृतयुग्म (जैसे -तीन, (जैसे-दो, (जैसे-एक, पांच, नौ है) यह इस तिर्यग्योनिक-जीवों हैं-पृच्छा। (क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक-जीव) के 'अवक्रान्ति पद' (६/७०-८० ) है। वे (क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक) जीव ( क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक- जीव) वे (क्षुल्लक कृतयुग्म-नैरयिक जीव) से..... इसी (भ. २५/६२०-६२६ ) पृष्ठ सूत्र पंक्ति ८९१ ६ १ ::::: == " ८९१ ::: ८९१ ८९१ ८९१ " ::: " swee: ८९२ ccur " " " " ६ ६-७ " " 6 6: V:N ८ ८ ९,१० " ९ १० ८९२ १२ " ३ १२ ४ ५ के बीच म ७ ८ য ३. १. * १० चाहिए। ११ समझना चाहिए। ३. र yo j ५ अशुद्ध रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में बतलानी चाहिए, यावत् 'पर प्रयोग होते' तक | शर्कराप्रभा के विषय में भी इसी यावत् 'अधः सप्तमी' तक बतलानी चाहिए। असंज्ञी जीव (भुजसरीसृप), पक्षी नरक पृथ्वी स्त्रियां छट्ठी है.....? के छठे पद अवक्रान्ति (सू. ७९ ८०) वे जीव इसी प्रकार -इस प्रकार के छठे पद अवक्रान्ति (सू. ८०) में के अवक्रान्ति पद (६ / ७०-८०) में (गाथाएं) क्षुल्लक त्र्योजनैरयिक जीव 'अधः सप्तमी' तक समझना चाहिए। उनकी संख्या हैं। शेष उसी प्रकार समझना चाहिए यावत् 'अधःसप्तमी' तक समझना चाहिए। शुद्ध रत्नप्रभा पृथ्वी में विषय में भी बतलानी चाहिए यावत् पर प्रयोग होते। वक्तव्य हैं। यावत् छठ्ठे पद 'अवक्रान्ति' (सू. ७७) - पृथ्वी के समझना चाहिए। (जैसा गया है) शर्कराप्रभा (में उपपत्र- क्षुल्लककृतयुग्म नैरयिक- जीवों) के (विषय में) भी, इस प्रकार यावत् अधः सप्तमा (में उपपन्न क्षुल्लक कृतयुग्मनैरयिक- जीवों) के (विषय में) (वक्तव्यता) । वे (क्षुल्लक त्र्योजनैरयिक) जीव (क्षुल्लक त्र्योजनैरयिक- जीव) अधः सप्तमी (में उपपन्न क्षुल्लकत्र्योजनैरयिक जीवों के विषय में वक्तव्यता)। परिमाण (संख्या) हैं, शेष उसी प्रकार (समझना चाहिए ) यावत् अधः सप्तमी (में उपपन्न क्षुल्लक द्वापरयुग्म नैरयिक जीवों के विषय में वक्तव्यता)। 'अधः सप्तमी' तक समझना चाहिए अधः सप्तमी (में उपपन्न क्षुल्लक - कल्योज-नैरयिक जीवों के विषय में वक्तव्यता)। (वक्तव्य है) यावत् 'अवक्रान्ति-पद' (६/७७) -पृथ्वी में (समझना चाहिए) (जैसा गया है) । असंज्ञि जीव (भुजसरीसृप दूसरी नरक- पृथ्वी पक्षी नरक - पृथ्वी ॥। १ ।। स्त्रियां छट्ठी चाहिए ॥ २ ॥ (समझना चाहिए)। है० ? के अवक्रान्ति पद (६ / ७९-८०)
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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