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________________ पृष्ठ ७०७ ७०५ ७०६ ६ " ७०७ " " ७०७ १ ७०७ १ ७०७ १ " ७०७ ७०८ २. ७०७ २ ७०७ ७०८ ७०८ ७०८ ७०८ सूत्र पंक्ति २ ७ ७०८ ७०८ अशुद्ध करणीय है, यावत् शेष उसी प्रकार इस प्रकार छह शतक २३ १. शीर्षक आलुक आदि जीवों में राजगृह नगर यावत् गौतम ने १ :: " १ १ ७०८ ७०८ ७०८ * २ २ २ शीर्षक x ४ ४ ४. ६ २ कृष्णपुष्पवाली ४, ५ होते हैं, भन्ते ! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं। san ८ १० " ८ २, ३ होते हैं, भन्ते । वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं। ३ * उत्पन्न गौतम! ये जीव एवं उत्कर्षतः अन्तर्मुहूर्त, शेष उसी प्रकार ५ शीर्षक x १ आय कुहण (भूमि स्फोट), काय, ग्रन्थिपर्ण, कुन्दुरु ३ होते हैं, भन्ते! वे जीव कहां से (आकर) उत्पन्न होते हैं। अविकल रूप में कहने चाहिएकेवल इतना ५ ४ ६ ६ शीर्षक x २, ३ होते हैं, भन्ते ! वे जीव कहां से (आकर) उत्पन्न होते हैं। ६ ४-५ अविकल रूप में कहने चाहिएकेवल इतना शेष उसी प्रकार ६ ६ शीर्षक x ८ शेष उसी प्रकार । (भ. २३/१) में (भ. २३/१ में भांति कहने चाहिए, भांति (वक्तव्य हैं), भांति कहनी चाहिए, शेष उसी प्रकार भांति (वक्तव्य है), शेष पूर्ववत् । (आय आदि में उपपात आदि की पृच्छा आय, काय (ग्रन्थिपर्ण), कुहुण (भूमि स्फोट), कुन्दुरु होते हैं ० ? ६ १ क्षीरकाकाली, ४, ५ होते हैं, भन्ते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं? अविकल रूप में कहने चाहिए। इन पाच शुद्ध करणीय हैं यावत् शेष पूर्ववत्। इस प्रकार छहों ही आलुक आदि जीवों में राजगृह (नगर) (भ. १/४-१०) यावत् (गौतम ने) कृष्णपुष्प वाली होते हैं ० ? उपपन्न गौतम! वे जीव भी उत्कर्षतः भी, अंतर्मुहूर्त, शेष पूर्ववत् (लोही आदि में उपपात आदि की पृच्छा होते हैं ० ? निरवशेष (वक्तव्य हैं), इतना (वक्तव्य है), शेष पूर्ववत् पाठा आदि में उपपात आदि की पृच्छा होते हैं ० ? निरवशेष (वक्तव्य हैं), इतना वक्तव्य है, शेष पूर्ववत् ( माषपर्णी आदि में उपपातआदि की पृच्छा ) क्षीरकाकोली, होते हैं ० ? निरवशेष (वक्तव्य है) इन पांचों ही पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७०८ ८ ७०९ स.गा. ७०९ " ७१३ "" ७१४ ७१४ " ७१५ "1 ७०९ ७११ ७१२ ७१२ २४ शीर्षक अध्यवसाय द्वार ७१२ २७ ७ करता है। - :: १ २ सं. गा. ४ राजगृह में यावत् इस प्रकार कहा (भ. २/४-२० ) हैं। ६ होते हैं। " ३ शीर्षक पचेन्द्रिय २९ ३२ ७ ३७ २ १९ २ यावत् स्पर्शनेन्द्रिय (भ. २ / ७७) २१ शीर्षक वेदक द्वार ७१५ ७१५ ४६ थे ·~~ ७१७ ५८ ३८ | ४०, ४३२ ४१ २ ६१ ६१ २ ३. به به ४४ २ जघन्य काल ४३ २-३ अनुबन्ध। यावत्- (भ. २४/८ ४७ ७१६ ५२ ७१७ ५५ ७१७ ५५ ३ ७१७ ५५ ४ ५६ ३, ४ अशुद्ध कहने चाहिए। उत्पन्न नहीं होते हैं। शतक २४ १०. उपयोग ११ संज्ञा 222 २६, ३५-३७) में यावत् (भ. २४/२७) गति३, ४ वक्तव्य है। शेष वक्तव्यता पूर्ववत् २ -पृथ्वी में यावत् गति अध्यवसाय अध्यवसान द्वार करता है। कथनीय है यावत् अनुबन्ध तक (भ. २४/८-२६) यह कायसंवेध है- एक काय से दूसरे काय में जाकर अथवा तुल्य काय में जाकर यथासंभव उसी काय में आना। कथनीय है (भ. २४/८-२६) यावत् अनुबन्ध वक्तव्य है यावत् (भ. २४/८-२६) वक्तव्य है (भ. २४/८-२६) यावत् अनुबन्ध तक अप्रशस्त अध्यवसान शुद्ध (वक्तव्य हैं)। उपपन्न नहीं होते। २१ १०. उपयोग ।। १ ।। ११. सज्ञा राजगृह में (भ. २/४ २०) यावत् इस प्रकार कहा है ॥ २ ॥ होते हैं ॥ ३ ॥ पंचेन्द्रिय यावत् (भ. २ / ७७) स्पर्शनेन्द्रिय । वेदना द्वार अनुबन्ध अप्रशस्त अध्यवसान - पृथ्वी में (भ. २४/२७) यावत् अध्यवसान जघन्य काल अनुबन्ध (भ. २४/८-२६, ३५३७) यावत् में (भ. २४/२७) यावत् गति - (वक्तव्य है)। अवशेष पूर्ववत् (भ. २४ / ८- २६) (वक्तव्य है)। पृथ्वी में (भ. २४/२९) यावत् गति (भ. २४/४६) । यावत्होते हैं पृच्छा असंज्ञी (भ. २४/४, ५) पृथ्वी में यावत् गति यावत् (भ. २४/४६) । | होते हैं..... पृच्छा असंज्ञी यावत् है (भ. २४/४,५) में यावत् अधः सप्तमी में। (भ. २/७६) में (भ. २/७५,७६) यावत् अधः सप्तमी में। असंज्ञी की भांति वक्तव्यता (भ. असंज्ञी (भ. २४/८) की भांति २४/८) (वक्तव्य हैं)। अथवा अज्ञान की भजना अथवा तीन अज्ञान की भजना होते हैं, अवशेष पूर्ववत् यावत् होते हैं। शेष अवशेष पूर्ववत् । यावत् पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७१८ ६४ २ ७१८ ६५ ४ ७१८ ६७ ६ ७१९ ६९,७६ २ ७१९ ७३ २ "3 ७२० ७२० ७२० ७७ २ ५ ७२० ५. ७२० ७७ ५. ७९ २. ७२२ 222333; ७२२ ७२१ ७९ ७२१ ७२१ ७९ ७९ ७२१ ८१ " ७५ २ ७७ २ " " * * ८३ ८४ सहनन संहनन वाले यावत् वाले। शेष पूर्ववत् यावत् अनुबन्ध तक (म. २४ /७९) । ८२ ३,४ अपेक्षा वही वक्तव्य हे यावत् ८५ ८६ ७२३ ८७ ७२३ ८८ ८९ ९० ७२४ ९४ ७२४ ९६ १७ १८ २१ ४. ७२४ ९७ ७२४ ९८ ३ ३ ३ वक्तव्य है यावत् अनुबन्ध तक (भ. २४/८१) । ३ नैरयिक की (भ. २४ / ६७) वक्तव्यता गमक (भ. २४/६७) अविकल रूप से २ २ ३ ३ ३-४ ५, ६ अशुद्ध है यावत् (भ. २४/५८-६२) -काल है। यावत् शेष जैसा प्रथम २ यावत् (भ. २४/६७) पर्यवसान- (भव की अपेक्षा तक ) २ कही वक्तव्य है यावत् है यावत् भवादेश जघयतः इस प्रकार. उत्क्षेप निक्षेप है यावत् भवादेश वक्तव्य है यावत् अनुबन्ध तक (भ. २४/८१) । अधः सप्तमी - पृथ्वी वक्तव्यता यावत् (भ. २४ / ६०, ६१) भवादेश तक केवल इतना शुद्ध है (भ. २४/५८-६२) यावत् काल। (भ. २४/१५-९६), है। वही वक्तव्यता, केवल है यावत् शव प्रथम (भ. २४/६७) यावत् पर्यवसान (भव की अपेक्षा तक) - वही वक्तव्य है (भ. २४/७३) यावत् है (भ. २४/७३) यावत् भवादेश जघन्यतः यह पैरा पिछले पैरे के साथ है। उत्क्षेप निक्षेप है (भ. २४/५८-६२) यावत् भवादेश यह पैरा पिछले पैरे के साथ है। संहनन वाले (ठा. ६/३०) यावत् वाले, शेष पूर्ववत् (भ. २४/५८-६२) यावत अनुबन्ध तक (वक्तव्य है)। अपेक्षा भी वही (वक्तव्य है) (भ. २४ / ६३, ६४) यावत् (भ. २४/६५) यावत् अनुबंध तक। नैरयिक (भ. २४/६६, ६७) की वक्तव्यता अधः सप्तमी - पृथ्वी वक्तव्यता (भ. २४/८१) यावत् सदृश (भ. २४/८७,८८) सदृश यावत् अनुबंध तक (भ. २४/८७, (भ. २४/८७,८८) यावत् अनुबन्ध ८८) 1 तक । यावत् अधः सप्तमी में (भ. २/७५) (भ. २/७५) यावत् अधः सप्तमी में जीवों की भांति वक्तव्य है। -जीवों (भ. २४/५९-६२) की भांति (वक्तव्य है) यावत् भवादेश तक, इतना (भ. २४/९५-९६), है, वही वक्तव्यता (भ. २४/९५ ९६), गमक (भ. २४/८४) निरवशेष (भ. २४/८४) यावत् अनुबन्ध तक
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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