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________________ भगवती सूत्र ४५. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । „ (तेरहवां- सोलवां उद्देशक ) श. ४१ : उ. १३-२८ : सू. ४५-५३ ४६. इसी प्रकार कापोतलेश्य जीवों के विषय में भी राशियुग्म कृतयुग्म, राशियुग्म - योज, राशियुग्म - द्वापरयुग्म, राशियुग्म - कल्योज के चार उद्देशक बतलाने चाहिए, केवल इतना अन्तर है- ( कापोतलेश्य - राशियुग्म कृतयुग्म, राशियुग्म त्र्योज-, राशियुग्म - द्वापरयुग्म-, राशियुग्म- कल्योज) - नैरयिक-जीवों का उपपात जैसा रत्नप्रभा के नैरयिक- जीवों का बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। I ४७. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । (सत्रहवां- बीसवां उद्देशक) ४८. भन्ते! तेजोलेश्य राशियुग्म कृतयुग्म असुरकुमार देवों के जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं.....? (ये सारे विषय) उसी प्रकार बतलाने चाहिए, (जैसे कापोतलेश्य - राशियुग्म- कृतयुग्म - नैरयिक- जीवों के विषय में बतलाये गये हैं) केवल इतना अन्तर है-जिन जीवों में तेजोलेश्या प्राप्त होती है उन जीवों के विषय में बतलाना चाहिए। इसी प्रकार जैसे कृष्णलेश्य जीवों के विषय में राशियुग्म कृतयुग्म, राशियुग्म त्र्योज, राशियुग्म - द्वापरयुग्म, राशियुग्म-कल्योज- ये चार उद्देशक बतलाये गये वैसे ही चार उद्देशक तेजोलेश्य जीवों के विषय में बतलाने चाहिए। ४९. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । (इक्कीसवां-चौवीसवां उद्देशक) ५०. इसी प्रकार पद्मलेश्य जीवों के विषय में भी राशियुग्म - कृतयुग्म, राशियुग्म त्र्योज, राशियुग्म- द्वापरयुग्म, राशियुग्म-कल्योज के चार उद्देशक बतलाने चाहिए। पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों, मनुष्यों और वैमानिक - देवों - इन तीन (दण्डक ) के जीवों में पद्मलेश्या बताई गई है, शेष दण्डक के जीवों में पद्मलेश्या नहीं हैं। ५१. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । (पच्चीसवां अट्ठाइसवां उद्देशक) ५२. जिस प्रकार पद्मलेश्य जीवों के विषय में राशियुग्म कृतयुग्म, राशियुग्म - योज, राशियुग्म द्वापरयुग्म, राशियुग्म-कल्योज -ये चार उद्देशक बतलाये गये वैसे ही शुक्ललेश्य - जीवों के विषय में बतलाने चाहिए, केवल इतना अन्तर है - मनुष्यों का गमक जैसा औधिक उद्देशकों में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है । इसी प्रकार छह लेश्या वाले जीवों में ये चौबीस उद्देशक बतलाये गये तथा चार औधिक उद्देशक बतलाये गये, वे सब अट्ठाईस उद्देशक होते हैं । ५३. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है। ९५१ - -
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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