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________________ भगवती सूत्र परिग्रह - संज्ञोपयुक्त होते हैं? क्या नोसंज्ञोपयुक्त होते हैं ? गौतम ! कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीव आहार-संज्ञोपयुक्त भी होते हैं यावत् नोसंज्ञोपयुक्त भी होते हैं । ( इसी प्रकार ) सभी बोलों के विषय में पृच्छा करनी चाहिए - ( गौतम ! ) ये जीव क्रोध-कषायी भी होते हैं यावत् लोभ कषायी भी होते हैं, अकषायी भी होते हैं। ये जीव स्त्री-वेदक भी होते हैं, पुरुष - वेदक भी होते हैं, नपुंसक - वेदक भी होते हैं, अवेदक भी होते हैं । ये जीव स्त्री-वेदक-बन्धक भी होते हैं, पुरुष - वेद-बन्धक भी होते हैं, नपुंसक - वेद-बन्धक भी होते हैं, अबन्धक भी होते हैं। ये जीव संज्ञी ही होते हैं, असंज्ञी नहीं होते। ये जीव स-इन्द्रिय ही होते हैं, अनिन्द्रिय नहीं होते। इन जीवों का संस्थान-काल जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः सातिरेक (किंचित् अधिक) पृथक्त्व-शत (दो सौ से नव सौ ) - सागरोपम है। वे जीव आहार उसी प्रकार यावत् नियमतः छहों दिशाओं से ग्रहण करते हैं। (ये जीव त्रस-नाल में होते हैं)। इन जीवों की स्थिति जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः तेतीस सागरोपम की होती है। इन जीवों के पहले छह (सातवां छोड़कर) समुद्घात होते हैं (क्योंकि केवली नोसंज्ञी नोअसंज्ञी होते हैं) ये जीव मारणान्तिक - समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं, असमवहत होकर भी मरते हैं। इन जीवों से उद्वर्तन (जीवों का बाहर निकलना) वैसा ही होता है जैसा उपपात बतलाया गया है (भ. ४०।१), कहीं भी प्रतिषेध नहीं है यावत् 'अनुत्तर विमान' तक । श. ४० का पहला अंतर्शतक : उ. १,२ : सू. ३-६ ४. भन्ते ! सभी प्राण यावत् (सब प्राण, भूत जीव और सत्त्व क्या कृतयुग्म कृतयुग्म संज्ञी - -पंचेन्द्रिय-जीवों के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? हां, गौतम ! सभी प्राण यावत् सत्त्व कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय जीवों के रूप में) अनन्त बार तक (उत्पन्न हुए हैं)। इस प्रकार सोलह ही युग्मों के विषय में बतलाना चाहिए, यावत् 'अनन्त बार' तक केवल इतना अन्तर है - इन जीवों का परिमाण जैसा (सभी युग्मों के) द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाया गया वैसा ही बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए । ५. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । दूसरा- ग्यारहवां उद्देशक (दूसरा उद्देशक) ६. भन्ते ! प्रथम समय के कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं.....? इन जीवों का उपपात, परिमाण तथा आहार जैसा प्रथम उद्देशक (भ. ४० ।३) में कृतयुग्म - कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए । इन जीवों की अवगाहना, बन्ध, वेद तथा वेदना के विषय में और ये जीव उदयी और उदीरक होते हैं इस विषय में जैसा प्रथम समय के कृतयुग्म कृतयुग्म द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाया गया वैसा बतलाना चाहिए। उसी प्रकार ये जीव कृष्णलेश्य होते हैं यावत् 'शुक्ललेश्य होते हैं' तक बतलाना चाहिए। इन जीवों के शेष बोलों के विषय में जैसा प्रथम समय के कृतयुग्म - कृतयुग्म- द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाया गया यावत् 'अनन्त बार' ९३९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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