SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. ३५ : उ. १,२ : सू: १९-२३ भगवती सूत्र उत्पाद वैसा ही बतलाना चाहिए। इन जीवों का परिमाण पन्द्रह अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त होते हैं, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए यावत् 'अनन्त बार' तक। इसी प्रकार इन सोलह महायुग्मों के विषय में एक ही गमक जानना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-परिमाण में नानात्व है, जैसे-त्र्योज-द्वापरयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण-चौदह अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। योज-कल्योज-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण-तेरह अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। द्वापरयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण-आठ अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। द्वापरयुग्म-त्र्योज-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण-ग्यारह अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। द्वापरयुग्म-द्वापरयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण-दस अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। द्वापरयुग्म-कल्योज-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण-नव अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। कल्योज-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण-चार अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। कल्योज-त्र्योज-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण-सात अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। कल्योजद्वापरयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों का परिमाण छह अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। २०. भन्ते! कल्योज-कल्योज-एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? इन जीवों का उत्पाद वैसा ही बतलाना चाहिए। इन जीवों का परिमाण-पांच अथवा संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त होते हैं, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए यावत् 'अनन्त बार' तक। २१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। दूसरा उद्देशक २२. भन्ते! प्रथम समय के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? गौतम! उसी प्रकार इसी प्रकार जैसा प्रथम उद्देशक (भ. ३५।३-२०) में बतलाया गया है वैसा सोलह (सोलह प्रकार के महायुग्मों के प्रथम समय के जीवों के विषय में) बार द्वितीय उद्देशक बतलाना चाहिए। उसी प्रकार सम्पूर्ण वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है ये दस नानात्व हैं-१. अवगाहना-प्रथम समय के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों की अवगाहना जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कर्षतः भी अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग होती है। २. वे आयुष्य-कर्म का बन्ध नहीं करते, अतः अबन्धक होते हैं। ३. वे आयुष्य-कर्म की उदीरणा नहीं करते, अतः अनुदीरक होते हैं। ४. वे न उच्छ्वासक होते हैं, न निःश्वासक होते हैं, न उच्छ्वासक-निःश्वासक होते हैं। ५. वे सप्तविध-बन्धक होते हैं, अष्टविध-बन्धक नहीं होते। २३. भन्ते! वे प्रथम समय के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीव काल की अपेक्षा से कितने समय तक रहते हैं? गौतम! ६. वे प्रथम समय के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीव काल की अपेक्षा से एक ९२६
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy