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________________ भगवती सूत्र द्वापरयुग्म - कल्योज है; (यह जघन्यतः नव है ) ॥ १२ ॥ जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर चार पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार - समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर एक ही पर्यवसित रहता है, वह राशि कल्योज - कृतयुग्म है; ( यह जघन्यतः चार है ) ।। १३ ।। श. ३५ : उ. १: सू. २-७ जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर तीन पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार - समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर एक ही पर्यवसित रहता है, वह राशि कल्यो-योज है; (यह जघन्यतः सात है ) ॥ १४ ॥ जिस राशि को सामयिक - चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर दो पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार - समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर एक ही पर्यवसित रहता है, वह राशि कल्योज - द्वापरयुग्म है; (यह जघन्यतः छह है) ।। १५ ।। जिस राशि को सामायिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर एक पर्यवसित रहता है तथा अपहार - समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर एक ही पर्यवसित रहता है, वह राशि कल्योज - कल्योज है; ( यह जघन्यतः पांच है) ।। १६ ।। यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् कल्योज - कल्योज तक। ३. भन्ते ! कृतयुग्म - कृतयुग्म एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं - क्या नैरयिक से आकर उत्पन्न होते हैं ?. जैसे उत्पल - उद्देशक (भ. ११ । २) में बतलाया गया है वैसा यहां उपपात बतलाना चाहिए । ४. भन्ते ! वे (कृतयुग्म - कृतयुग्म - एकेन्द्रिय) - जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे (कृतयुग्म - कृतयुग्म एकेन्द्रिय) - जीव एक समय में सोलह उत्पन्न होते हैं, (अथवा बत्तीस, अडचालीस.....) संख्येय अथवा असंख्येय अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं । ५. भन्ते ! जीव प्रतिसमय अपहरण किये जाने पर ( निकाले जाने पर ) - पृच्छा ( कितने समय में अपहृत होते हैं ) ? गौतम ! वे अनन्त जीव प्रतिसमय अपहरण किये जाने पर ( निकाले जाने पर) अनन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी-काल तक (भी) अपहृत किये जाये, तो भी अपहृत नहीं होते। इन जीवों का उच्चत्व जैसा ग्यारहवें शतक के प्रथम उत्पल - उद्देशक (भ. ११।५) में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए । ६. भन्ते ! वे जीव क्या ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धक हैं? अबन्धक हैं ? गौतम ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धक है, अबन्धक नहीं हैं। इसी प्रकार आयुष्य-कर्म को छोड़कर शेष सभी कर्म के बन्धक होते हैं, अबन्धक नहीं होते । आयुष्य-कर्म के बन्धक भी होते हैं अबन्धक भी होते हैं । ७. भन्ते ! वे जीव क्या ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करते हैं - पृच्छा । गौतम ! वे जीव वेदक हैं, अवेदक नहीं हैं। इसी प्रकार सभी कर्मों के विषय में जानना चाहिए। ९२३
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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