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________________ श. ३४ : श. ६-१२ : सू. ६५-६७ भगवती सूत्र ६५. भन्ते! परम्पर-उपपन्न-कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-पर्याप्तक-बादर-पृथ्वीकायिक-जीवों के स्थान कहां प्रज्ञप्त हैं? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसा औधिक-उद्देशक (भ. ३४१५२) बतलाया गया है वैसा ही यावत् 'तुल्य-स्थितिक' तक बतलाना चाहिए। इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में भी बतलाना चाहिए। उसी प्रकार ग्यारह उद्देशक-संयुक्त छट्ठा शतक कहा गया है। सातवां-बारहवां शतक ६६. नीललेश्य-भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में (सातवां) शतक जानना चाहिए। इसी प्रकार कापोतलेश्य-भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में (आठवां) शतक जानना चाहिए। जैसे भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीवों के चार शतक बतलाये गये वैसे ही अभवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीवों के भी चार शतक बतलाने चाहिए, केवल इतना अन्तर है-चरम, अचरम-इन दो उद्देशकों को छोड़कर नव उद्देशक बतलाने चाहिए, शेष सब उसी प्रकार है। इस प्रकार एकेन्द्रिय श्रेणी के ये बारह शतक बतलाए गये। ६७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। ९२०
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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