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________________ श. ३१ : उ. ७-२८ : सू. ३१-४२ भगवती सूत्र (आठवां उद्देशक) ३१. कापोतलेश्य-भवसिद्धिक चारों ही युग्मों में (नैरयिक-जीव) उसी प्रकार उपपन्न कराना चाहिए जैसा औधिक (समुच्चय) कापोतलेश्य-उद्देशक में बतलाया गया है। ३२. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते वह ऐसा ही है। इसी प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। (नवां-बारहवां उद्देशक) ३३. जैसे भवसिद्धिकों के चार उद्देशक बताये गए हैं वैसे ही अभवसिद्धिकों के भी चार उद्देशक बताने चाहिए यावत् 'कापोतलेश्य-उद्देशक' तक। ३४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (तेरहवां-सोलहवां उद्देशक) ३५. इसी प्रकार लेश्या-युक्त-सम्यग्-दृष्टि-(नैरयिक-जीवों) के भी चारों उद्देशक करने चाहिए, केवल इतना अन्तर है-सम्यग्-दृष्टि-(नैरयिक-जीवों का) प्रथम और द्वितीय इन दो उद्देशकों में अधःसप्तमी-पृथ्वी में उपपन्न नहीं करना चाहिए। शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। ३६. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (सतरहवां से बीसवां उद्देशक) ३७. मिथ्यादृष्टि-(नैरयिक-जीवों के) भी चार उद्देशक करने चाहिए जैसा भवसिद्धिक-नैरयिक -जीवों के बतलाये गये हैं। ३८. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (इक्कीसवां-अट्ठाईसवां उद्देशक) ३९. इसी प्रकार लेश्या-संयुक्त-कृष्णपाक्षिक-(नैरयिक-जीवों के) चार उद्देशक करने चाहिए, जैसा भवसिद्धिक-नैरयिक-जीवों के बतलाये गये हैं। ४०. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। ४१. शुक्लपाक्षिक-(नैरयिक-जीवों के) इसी प्रकार चार उद्देशक वक्तव्य हैं यावत्भन्ते! बालुकाप्रभा-पृथ्वी के कापोतलेश्य-शुक्लपाक्षिक-क्षुल्लक-कल्योज-नैरयिक-जीव कहां से आकार उपपन्न होते हैं? उसी प्रकार यावत् 'परप्रयोग से उपपन्न नहीं होते' तक वक्तव्य हैं। ४२. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। ये सारे ही अट्टाईस उद्देशक वक्तव्य हैं। ८९४
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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