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________________ भगवती सूत्र श. ३१ : उ. १-२ : सू. ५-१२ (भ. २५।६२०) में नैरयिक-जीवों की वक्तव्यता है वैसे ही यहां पर भी बतलानी चाहिए, यावत् अपने प्रयोग से उपपन्न होते हैं, पर-प्रयोग से उपपन्न नहीं होते। ६. भन्ते। रत्नप्रभा-पृथ्वी के क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार जैसे समुच्चय नैरयिक-जीवों के विषय में वक्तव्यता है वैसी ही वक्तव्यता रत्नप्रभा के विषय में बतलानी चाहिए, यावत् 'पर-प्रयोग से उपपन्न नहीं होते' तक। इसी प्रकार शर्कराप्रभा के विषय में भी इसी प्रकार यावत् 'अधःसप्तमी' तक बतलानी चाहिए। इसी प्रकार उपपात जैसे पण्णवणा के छठे पद अवक्रान्ति (सू. ८०) में बतलाया गया है वैसे वक्तव्य है। असंज्ञी, जीव प्रथम नरक-पृथ्वी; सरीसृप जीव (भुजसरीसृप), पक्षी तीसरी नरक-पृथ्वी; सिंह चतुर्थ नरक-पृथ्वी; उरग (उरसरीसृप) पञ्चमी नरक-पृथ्वी; स्त्रियां छट्ठी नरक-पृथ्वी; मत्स्य और मनुष्य सातवीं नरक-पृथ्वी तक उपपन्न होते हैं। यह नरक-पृथ्वियों में उपपात जान लेना चाहिए। शेष उसी प्रकार समझना चाहिए। ७. भन्ते! क्षुल्लक-त्र्योज-नैरयिक जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं क्या नैरयिक-जीवों से आकर उपपन्न होते हैं....? उपपात जैसे पण्णवणा के छठे पद अवक्रान्ति (सू. ७९-८०) में बताया गया है वैसे वक्तव्य हैं। ८. भन्ते! एक समय में वे जीव कितने उपपन्न होते हैं? गौतम! क्षुल्लक-त्र्योज-नैरयिक-जीव एक समय में तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्येय अथवा असंख्येय उपपन्न होते हैं। शेष कृतयुग्म-नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं। इसी प्रकार यावत् 'अधःसप्तमी' तक समझना चाहिए। ९. भन्ते! क्षुल्लक-द्वापरयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार क्षुल्लक-कृतयुग्म की भांति वक्तव्य हैं, केवल इतना अन्तर है उनकी संख्या दो, छह, दस, चौदह, संख्येय अथवा असंख्येय उपपन्न होते हैं। शेष उसी प्रकार समझना चाहिए यावत् 'अधःसप्तमी' तक समझना चाहिए। १०. भन्ते! क्षुल्लक-कल्योज-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार क्षुल्लक-कृतयुग्म की भांति वक्तव्य हैं, केवल इतना अन्तर है-उनकी संख्या एक, पांच, नौ, तेरह, संख्येय अथवा असंख्येय उपपन्न होते हैं, शेष उसी प्रकार समझना चाहिए। इसी प्रकार यावत् 'अधःसप्तमी' तक समझना चाहिए। ११. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुवे विहरण कर रहे हैं। दूसरा उद्देशक १२. भन्ते! कृष्णलेश्य-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी ८९१
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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