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________________ भगवती सूत्र श. ३० : उ. २-११ : सू. ४२-४७ नैरयिक-जीवों की वक्तव्यता बतलाई गई वैसे ही यहां पर भी बतलानी चाहिए, यावत् अनाकारोपयुक्त तक। इसी प्रकार यावत् वैमानिक-देवों तक केवल इतना अन्तर है-जो बोल जिसमें हैं उसे उसमें बतलाना चाहिए। उसका लक्षण इस प्रकार है-जो क्रियावादीशुक्लपाक्षिक-सम्यग-मिथ्या-दृष्टि-जीव होते हैं ये सभी भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते। शेष सभी भवसिद्धिक भी होते हैं अभवसिद्धिक भी होते हैं। ४३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। तीसरा उद्देशक ४४. भन्ते! परम्पर-उपपन्न (प्रथम समय को छोड़कर दूसरे, तीसरे आदि समय के)-नैरयिक-जीव क्या क्रियावादी हैं.....? इसी प्रकार जैसे औधिक-उद्देशक बताया गया वैसे ही परम्पर-उपपन्न-नैरयिक आदि जीवों के विषय में सम्पूर्ण रूपसे वक्तव्य हैं, उसी प्रकार दण्डक-त्रय में संग्रहीत नैरयिक आदि जीवों के विषय में क्रियावादी आदि का निरूपण वक्तव्य हैं। (प्रथम दण्डक में नैरयिक आदि पदों में क्रियावादी आदि की प्ररूपणा वक्तव्य है। दूसरे दण्डक में आयु-बन्ध की प्ररूपणा वक्तव्य है। तीसरे दण्डक में भवसिद्धिक अभवसिद्धिक की प्ररूपणा वक्तव्य है।) ४५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुवे विहरण कर रहे हैं। - चौथा-ग्यारहवां उद्देशक ४६. इसी प्रकार इसी क्रम से जो-जो बोल बन्धि-शतक (भ. २६वें शतक) में जो उद्देशकों की परिपाटी बताई गई है वही यहां पर भी वक्तव्य है यावत् अचरम-उद्देशक तक, केवल इतना अन्तर है-चारों ही अनन्तर-उद्देशकों का एक ही गमक है। चारों ही परम्पर-उद्देशकों का एक ही गमक है। (प्रथम उद्देशक औधिक (समुच्चय) है इस प्रकार नौ उद्देशक हुए)। इसी प्रकार चरम-उद्देशक भी, और अचरम-(उद्देशक) भी इसी प्रकार, केवल इतना अन्तर है-इनमें लेश्या-रहित, केवली और अयोगी ये तीन बोल वक्तव्य नहीं हैं (क्योंकि असंभव है), शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। ४७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। ये ग्यारह उद्देशक भी (समवरण शतक के) ८८९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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