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________________ श. २५ : उ. ७ : सू. ६०५-६१५ भगवती सूत्र ६०५. धर्म्य-ध्यान चार प्रकार का और चार पदों (स्वरूप, लक्षण, आलम्बन और अनुप्रेक्षा) में अवतरित होता है, जैसे-१. आज्ञा-विचय-प्रवचन के निर्णय में संलग्न चित्त-अतीन्द्रिय विषयों में प्रवृत्त चित्त। २. अपाय-विचय-दोषों के निर्णय में संलग्न चित्त, ३. विपाक-विचय-कर्म-फलों के निर्णय में संलग्न चित्त, ४. संस्थान-विचय–विविध पदार्थों के आकृति-निर्णय में संलग्न चित्त। ६०६. धर्म्य-ध्यान के चार लक्षण प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. आज्ञा-रुचि-प्रवचन में श्रद्धा होना। २. निसर्ग-रुचि-सहज ही सत्य में श्रद्धा होना। ३. सूत्र-रुचि-सूत्र-पाठ से सत्य में श्रद्धा उत्पन्न होना। ४. अवगाढ़-रुचि-विस्तृत पद्धति से सत्य में श्रद्धा होना। ६०७. धर्म्य-ध्यान के चार आलम्बन प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. वाचना २. प्रतिप्रच्छना ३. परिवर्तना ४. धर्मकथा। ६०८. धर्म्य-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. एकत्व-अनुप्रेक्षा-अकेलेपन का चिन्तन करना २. अनित्य-अनुप्रेक्षा–पदार्थों की अनित्यता का चिन्तन करना। ३. अशरण-अनुप्रेक्षा-अशरण दशा का चिन्तन करना। ४. संसार-अनुप्रेक्षा-संसार-परिभ्रमण का चिन्तन करना। ६०९. शुक्ल-ध्यान चार प्रकार का और चार पदों (स्वरूप, लक्षण, आलम्बन और अनुप्रेक्षा) में अवतरित होता है, जैसे-१. पृथक्त्व-वितर्क-सविचार २. एकत्व-वितर्क-अविचार ३. सूक्ष्म-क्रिया-अनिवृत्ति ४. समुच्छिन्नक्रिया-अप्रतिपाति। ६१०. शुक्ल-ध्यान के चार लक्षण प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. शान्ति-क्षमा, २. मुक्ति-निर्लोभता, ३. आर्जव-सरलता, ४. मार्दव-मृदुता। ६११. शुक्ल-ध्यान के चार आलम्बन प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. अव्यथा क्षोभ का अभाव, २. असम्मोह-सूक्ष्म-पदार्थ-विषयक मूढता का अभाव, ३. विवेक शरीर और आत्मा के भेद का ज्ञान ४. व्युत्सर्ग-शरीर और उपधि में अनासक्त भाव। ६१२. शुक्ल-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. अनन्तवृत्तिता-अनुप्रेक्षा–संसार -परम्परा का चिन्तन करना। २. विपरिणाम-अनुप्रेक्षा-वस्तुओं के विविध परिणामों का चिन्तन करना। ३. अशुभ-अनुप्रेक्षा-पदार्थों की अशुभता का चिन्तन करना। ४. अपाय-अनुप्रेक्षा–दोषों का चिन्तन करना। यह है ध्यान । ६१३. व्युत्सर्ग क्या है? व्युत्सर्ग दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-१. द्रव्य-व्युत्सर्ग और २. भाव-व्युत्सर्ग। ६१४. द्रव्य-व्युत्सर्ग क्या है? द्रव्य-व्युत्सर्ग चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-१. गण-व्युत्सर्ग, २. शरीर-व्युत्सर्ग, ३. उपधि-व्युत्सर्ग और ४. भक्तपान-व्युत्सर्ग। यह है द्रव्य-व्युत्सर्ग । ६१५. भाव-व्युत्सर्ग क्या है? भाव-व्युत्सर्ग तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे–कषाय-व्युत्सर्ग, संसार-व्युत्सर्ग और कर्म-व्युत्सर्ग। ८६२
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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