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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. ६ : सू. ३९९-४०५ की उदीरणा करता है, आठ कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ प्रतिपूर्ण आठ कर्म- प्रकृतियों की उदीरणा करता है, छह कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ आयुष्य और वेदनीय कर्म को छोड़कर छह कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है । प्रतिषेवणा-कुशील की पूर्ववत् वक्तव्यता । ४००. कषाय-कुशील ..? पृच्छा (भ. २५/३९८) । गौतम ! निर्ग्रन्थ सात प्रकार की कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है अथवा आठ प्रकार की कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है अथवा छह प्रकार की कर्म - प्रकृतियों की उदीरणा करता है अथवा पांच प्रकार की कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है। सात कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ वह आयुष्य-कर्म को छोड़कर सात कर्म - प्रकृतियों की उदीरणा करता है। आठ कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ वह प्रतिपूर्ण आठ कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है, छह कर्म - प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ वह आयुष्य- और वेदनीय कर्म को छोड़कर छह कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है। पांच कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ वह आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय कर्म को छोड़कर पांच कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है। ४०१. निर्ग्रन्थ ..? पृच्छा (भ. २५/३९८) । गौतम ! पांच प्रकार की कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है अथवा दो प्रकार की कर्म- प्रकृतियों की उदीरणा करता है। पांच कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ वह आयुष्य-, वेदनीय और मोहनीय कर्म को छोड़कर पांच कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है, दो कर्म - प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ वह नाम और गौत्र - कर्म - प्रकृतियों की उदीरणा करता है । ४०२. स्नातक .? पृच्छा (भ. २५/३९८) । गौतम ! दो प्रकार की कर्म - प्रकृतियों की उदीरणा करता है अथवा नहीं करता। दो कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ वह नाम की उदीरणा करता है । अनुदीरण होता है- उदीरणा और गौत्र - कर्म - प्रकृतियों उपसंपद्-हान-पद ४०३. भन्ते! पुलाकत्व का परित्याग करता हुआ पुलाक किनका परित्याग करता है, किसे उपसंपन्न करता है ? गौतम! वह पुलाकत्व का परित्याग करता हुआ कषाय-कुशील अथवा असंयम को उपसंपन्न करता है। ४०४. भन्ते! बकुश बकुशत्व का परित्याग करता हुआ किसका परित्याग करता है ? किसे उपसंपन्न करता है ? गौतम ! वह बकुशत्व का परित्याग करता है । प्रतिषेवणा- कुशील अथवा कषाय-कुशील अथवा असंयम अथवा संयमासंयम को उपसंपन्न करता है । ४०५. प्रतिषेवणा-कुशील .? पृच्छा (भ. २५/४०३) । ८३४
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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