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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. ४,५ : सू. २३९-२४६ की अपेक्षा इनसे अनन्त-गणा हैं। ७. सर्वतः सैज असंख्येय-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा इनसे अनन्त-गुणा हैं। ८. वे ही प्रदेश की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। ९. सर्वतः सैज संख्येय-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। १०. वे ही प्रदेश की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। ११. सर्वतः सैज परमाणु-पुद्गल द्रव्य और अप्रदेश की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। १२. देशतः सैज संख्येय-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। १३. वे ही प्रदेश की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। १४. देशतः सैज असंख्येय-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। १५. वे ही प्रदेश की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। १६. निरेज परमाणु-पुद्गल द्रव्य और अप्रदेश की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। १७. निरेज संख्येय-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा इनसे संख्येय-गुणा हैं। १८. वे ही प्रदेश की अपेक्षा इनसे संख्येय-गुणा हैं। १९. निरेज असंख्येय-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। २०. वे ही प्रदेश की अपेक्षा इनसे असंख्येय-गुणा हैं। मध्य-प्रदेश-पद २४०. भन्ते! धर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने प्रज्ञप्त हैं? गौतम! धर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश आठ प्रज्ञप्त हैं। २४१. भन्ते! अधर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने प्रज्ञप्त हैं? अधर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश आठ प्रज्ञप्त हैं। २४२. भन्ते! आकाशास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने प्रज्ञप्त हैं? आकाशास्तिकाय के मध्य-प्रदेश आठ प्रज्ञप्त है। २४३. भन्ते! जीवास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने प्रज्ञप्त हैं? गौतम! जीवास्तिकाय के मध्य-प्रदेश आठ प्रज्ञप्त हैं। २४४. भन्ते! जीवास्तिकाय के ये आठ मध्य-प्रदेश कितने आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करते गौतम! जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन अथवा चार अथवा पांच अथवा छह आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करते हैं, उत्कृष्टतः आठ आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करते हैं, सात आकाश-प्रदेशों का अवगाहन नहीं करते। २४५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। पांचवां उद्देशक पर्यव-पद २४६. भन्ते! पर्यव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! पर्यव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-जीव-पर्यव और अजीव-पर्यव। पर्यव-पद पण्णवणा का (पांचवां पद) निरवशेष वक्तव्य है। ८१५
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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