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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. ४ : सू. ११०-११९ गौतम! धर्मास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा कृतयुग्म नहीं है, त्र्योज नहीं है, द्वापरयुग्म नहीं है, कल्योज है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय की वक्तव्यता । इसी प्रकार आकाशास्तिकाय की वक्तव्यता । १११. भन्ते ! जीवास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा .......? पृच्छा । गौतम ! जीवास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा कृतयुग्म हैं, त्र्योज नहीं हैं, द्वापरयुग्म नहीं हैं, कल्योज नहीं हैं। ११२. भन्ते! पुद्गलस्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा ? पृच्छा । गौतम ! पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा स्यात् कृतयुग्म है यावत् स्यात् कल्योज है। अद्धासमय की जीवास्तिकाय की भांति वक्तव्यता । ११३. भन्ते ! धर्मास्तिकाय प्रदेश की अपेक्षा क्या कृतयुग्म है.....? पृच्छा। गौतम ! धर्मास्तिकाय प्रदेश की अपेक्षा कृतयुग्म है, त्र्योज नहीं है, द्वापरयुग्म नहीं है, कल्योज नहीं है। इसी प्रकार यावत् अद्धासमय की वक्तव्यता । ११४. भन्ते ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय यावत् अद्धासमय- इनमें द्रव्य की अपेक्षा कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं । इनका अल्पबहुत्व जैसा पण्णवणा के तीसरे पद 'बहुवक्तव्यता' (सू. ११४-१२२) में प्रज्ञप्त है वैसा ही निरवशेष वक्तव्य है । ११५. भन्ते ! धर्मास्तिकाय क्या अवगाढ़ है ? अनवगाढ़ है ? गौतम! धर्मास्तिकाय अवगाढ़ है, अनवगाढ़ नहीं है । ११६. ( भन्ते ! ) धर्मास्तिकाय यदि अवगाढ़ है तो क्या संख्येय-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है? असंख्येय- प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है? अनन्त प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है? असंख्येय- प्रदेशों का ११७. (भन्ते !) यदि धर्मास्तिकाय असंख्येय- प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है तो क्या कृतयुग्म - प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है.... ? पृच्छा । गौतम ! धर्मास्तिकाय संख्येय- प्रदेशों का अवगाहन नहीं करता, अवगाहन करने है, अनन्त प्रदेशों का अवगाहन नहीं करता । गौतम ! धर्मास्तिकाय कृतयुग्म प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, त्र्योज- प्रदेशों का अवगाहन नहीं करता, द्वापरयुग्म प्रदेशों का अवगाहन नहीं करता, कल्योज- प्रदेशों का अवगाहन नहीं करता । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय और इसी प्रकार आकाशास्तिकाय की वक्तव्यता । जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय की भी पूर्ववत् वक्तव्यता । ११८. भन्ते ! यह रत्नप्रभा - पृथ्वी क्या अवगाढ़ है ? अनवगाढ़ है ? जैसे धर्मास्तिकाय की वक्तव्यता वैसे ही यावत् अधः सप्तमी की । सौधर्म की भी इसी प्रकार यावत् ईषत् प्रागभारा- पृथ्वी की भी इसी प्रकार वक्तव्यता । ११९. भन्ते ! द्रव्य की अपेक्षा (एक) जीव क्या कृतयुग्म है.....? पृच्छा । ७९८
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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