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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. १,२ : सू. ६-१२ सत्यामृषा (मिश्र) - मनो-योग ४. असत्यामृषा (व्यवहार) - मनो- योग ५. सत्य वचन - योग ६. मृषा - वचन - योग ७. सत्यामृषा वचन - योग ८. असत्यामृषा वचन - योग ९. औदारिक-शरीर- काय - योग १०. औदारिक शरीर मिश्र - काय योग ११. वैक्रिय शरीर काय योग १२. वैक्रिय - शरीर - मिश्र - काय योग १३. आहारक- शरीर काय योग १४. अहारक- शरीर- मिश्र - काय - योग १५. कर्म शरीर काय - योग । - - ७. भन्ते! इन पन्द्रह प्रकार के जघन्य और उत्कृष्ट योग में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! १. कर्म - शरीर का जघन्य योग सबसे अल्प है, २. औदारिक- मिश्र का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, ३. वैक्रिय-मिश्र का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, ४. औदारिक- शरीर का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, ५. वैक्रिय-शरीर का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, ६. कर्म - शरीर का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, ७. आहारक- मिश्र का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, ८. उस (आहारक मिश्र) का ही उत्कृष्ट योग असंख्येय-गुणा अधिक है । ९,१०. औदारिक- मिश्र और वैक्रिय - मिश्र - इन दोनों का उत्कृष्ट योग परस्पर तुल्य है और आहारक- मिश्र के उत्कृष्ट योग से असंख्येय-गुणा अधिक है, ११. असत्यमृषा-मनो- योग का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, १२. आहारक - शरीर का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, १३ - १९. तीन प्रकार के मनो-योग के चार प्रकार के वचन -योग के—ये सातों भी परस्पर तुल्य, जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है । २०. आहारक-शरीर का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है । २१-३०. औदारिक- शरीर और वैक्रिय - शरीर के, चार प्रकार के मनो-योग के और चार प्रकार के वचन - योग के इन दसों का भी परस्पर तुल्य, उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा अधिक है। ८. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है । दूसरा उद्देशक द्रव्य-पद ९. भन्ते ! द्रव्य कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! द्रव्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य । १०. भन्ते ! अजीव द्रव्य कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-रूपि - अजीव द्रव्य और अरूपि - अजीव द्रव्य । ११. भन्ते ! अरूपि - अजीव द्रव्य कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! दस प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय का प्रदेश अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, अद्धासमय । १२. भन्ते ! रूपि - अजीव द्रव्य कितने प्रकार के प्रज्ञप्त ? ७८३
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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