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________________ भगवती सूत्र श. २४ : उ. २० : सू. २६७-२७२ (चौथा, पांचवां और छट्टा गमक : जघन्य और औधिक, जघन्य और जघन्य, जघन्य और उत्कृष्ट) २६७. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न संज्ञी - पंचेन्द्रिय- तिर्यग्योनिक-जीव जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयुष्य वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है, उसकी लब्धि संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीव पृथ्वीकायिक- जीव के रूप में उपपद्यमान के मध्यमवर्ती तीन गमकों (चोथे, पांचवें और छट्ठे) में जो वक्तव्यता है वही यहां मध्यमवर्ती तीनों गमकों में वक्तव्य है । कायसंवेध इसी के असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों के तीनों गमकों की भांति वक्तव्य है । (सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक) २६८. वही अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक - जीवों में उत्पन्न होता है - प्रथम गमक (भ. २४/२६३,२६४) की भांति वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है- स्थिति और उत्कृष्टतः भी कोटि- पूर्व । काल की अपेक्षा - जघन्यतः उत्कृष्टतः पृथक्त्व-कोटि-पूर्व-अधिक तीन- पल्योपम । अनुबंध - जघन्यतः कोटि- पूर्व, अन्तर्मुहूर्त - अधिक-कोटि-पूर्व, (आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य ) २६९. वही उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव में जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। वही वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है - काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त - अधिक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः चार- अन्तर्मुहूर्त - अधिक चार-कोटि-पूर्व । (नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) २७०. वही उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है - जघन्यतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। अवशेष पूर्ववत् । (भ. २४ / २६९) केवल इतना विशेष है - परिमाण और अवगाहना-इसी के तीसरे गमक की भांति वक्तव्य है । (भ. २४ / २६६) । भव की अपेक्षा दो भव-ग्रहण, काल की अपेक्षा जघन्यतः कोटि-पूर्व-अधिक-तीन- पल्योपम, उत्कृष्टतः कोटि- पूर्व-अधिक तीन - पल्योपम - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है । तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय में मनुष्यों का उपपात आदि २७१. यदि मनुष्य से पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? असंज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं? गौतम ! संज्ञी मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी - मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं । इकावनवां आलापक : तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय में असंज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि २७२. भन्ते ! असंज्ञी - मनुष्य, जो पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते ! - ७६०
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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