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________________ श. २४ : उ. ३-११ : सू. १५६-१६२ भगवती सूत्र (चौथा, पांचवां और छट्ठा गमक : जघन्य और औघिक, जघन्य और जघन्य, जघन्य और उत्कृष्ट) १५६. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-मनुष्य) (यौगलिक) अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न मनुष्य-यौगिलक नागकुमारों में उपपन्न होता है, उसके तीनों गमक असुरकुमारों में उपपद्यमान की भांति निरवशेष वक्तव्य हैं। (भ. २४/१३७) (सातवां, आठवां और नवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक, उत्कृष्ट और जघन्य, उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) १५७. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-मनुष्य) (यौगलिक) अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति में उपपन्न मनुष्य-यौगलिक नागकुमारों में उपपन्न होता है। उसके तीनों (सातवां, आठवां और नवमां) गमक उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी-मनुष्य के असुरकुमारों में उपपद्यमान की भांति वक्तव्य है (भ. २४/१३८), केवल इतना विशेष है-नागकुमार की स्थिति और कायसंवेध ज्ञातव्य हैं। शेष पूर्ववत्।। उन्नीसवां आलापक : नागकुमार में संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों का उपपात आदि १५८. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से नागकुमारों में उपपन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं? संख्यात वर्ष की आयु वाले अपर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं? गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं, संख्यात वर्ष की आयु वाले अपर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न नहीं होते। (पहले से नवें गमक तक) १५९. भन्ते! संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्य, जो नागकुमारों (देवों) में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते! वह जीव कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उपपन्न होता है? गौतम! जघन्यतः दस-हजार-वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कुछ-अंश-कम-दो-पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उपपन्न होता है। इसी प्रकार असुरकुमारों में उपपद्यमान की भांति वही प्राप्ति नौ गमकों में निरवशेष वक्तव्य है (भ. २४/१३९-१४१), केवल इतना विशेष है-नागकुमारों की स्थिति और कायसंवेध ज्ञातव्य हैं। १६०. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। चौथा-ग्यारहवां उद्देशक बीसवां आलापक : सुपर्णकुमार से स्तनितकुमार का अधिकार १६१. सुवर्णकुमार आदि स्तनितकुमार तक के आठ उद्देशक वैसे ही वक्तव्य हैं, जैसे नागकुमार की निरवशेष वक्तव्यता। १६२. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। ७३८
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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