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________________ श. २४ : उ. ३ : सू. १४७-१५२ भगवती सूत्र १४७. भन्ते! वे जीव एक समय म कितने उपपन्न होते हैं? शेष वही असुरकुमारों में उपपन्न होने वाले गमक की वक्तव्यता (भ. २४/१२१) यावत्-भवादेश-भव की अपेक्षा तक। काल की अपेक्षा जघन्यतः दस-हजार-वर्ष-अधिक-सातिरेक-पूर्व-कोटि, उत्कृष्टतः देशोन-पांच-पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) १४८. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक (यौगलिक) जघन्य काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उपपन्न होता है, वही वक्तव्यता (भ. २४/१४७)), केवल इतना विशेष है-नागकुमार की स्थिति और कायसंवेध के विषय में जानना चाहिए। स्थिति-जघन्यतः दस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः भी दस-हजार-वर्ष। कायसंवेध–जघन्यतः कुछ अधिक (दस-हजार-वर्ष-अधिक)-कोटि-पूर्व और उत्कृष्टतः कुछ-अधिक-(दस-हजार-वर्ष-तीन-पल्योपम)। (तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) १४९. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक (यौगलिक)) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उपपन्न होता है। वही वक्तव्यता (भ. २४/ १४७), इतना विशेष है-स्थिति जघन्यतः देशोन-दो-पल्योपम, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम। शेष पूर्ववत्। यावत् भवादेश तक। काल की अपेक्षा जघन्यतः देशोन-चार-पल्योपम, उत्कृष्टतः देशोन-पांच-पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (चौथा, पांचवां और छट्ठा गमक : जघन्य और औधिक, जघन्य और जघन्य, जघन्य और उत्कृष्ट) १५०. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न यौगलिक-जीव नागकुमारों में उपपन्न होता है। उसके विषय में तीनों ही गमक असुरकुमारों में उपपद्यमान जघन्य काल की स्थिति वाले असंख्यात-वर्षायुष्क-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक की भांति अविकल रूप से वक्तव्य है (भ. २४/१३७)। (सातवां, आठवां और नवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक, उत्कृष्ट और जघन्य, उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) १५१. वही अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न यौगलिक नागकुमारों में उपपन्न होता है। उसके विषय में तीनों ही (सातवां, आठवां, और नववां) गमक (भ. २४/१३८) में उपपद्यमान की भांति वक्तव्य है। इतना विशेष है-नागकुमार की स्थिति और कायसंवेध ज्ञातव्य हैं। शेष पूर्ववत्। सत्रहवां आलापक : नागकुमार में संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त संज्ञी-तिर्यञ्च -पञ्चेन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि १५२. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उपपन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-पञचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उपपन्न होते ७३६
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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