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________________ भगवती सूत्र श. २४ : उ. २ : सू. १२०-१२३ गौतम! जघन्यतः दस हजार वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमार के रूप में उपपन्न होता है। १२१. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं......पृच्छा। गौतम! जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्यात उपपन्न होते हैं। वे वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन वाले होते हैं। आवगाहना-जघन्यतः पृथक्त्व-धनुष, उत्कृष्टतः छह गव्यूत। वे समचतुरस्र-संस्थान वाले प्रज्ञप्त हैं। प्रथम चार लेश्याएं होती हैं, सम्यग्-दृष्टि नहीं होते, मिथ्या-दृष्टि होते हैं, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि नहीं होते। ज्ञानी नहीं होते, अज्ञानी होते हैं। नियमतः दो अज्ञान-मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान वाले होते हैं। योग-तीनों प्रकार के होते हैं। उपयोग दोनों प्रकार के होते हैं। संज्ञाएं चार। कषाय-चार। इन्द्रियां-पांच । समुद्घात-प्रथम तीन। समवहत अवस्था में भी मृत्यु को प्राप्त होते हैं, असमवहत अवस्था में भी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वेदना भी दो प्रकार की होती है सात-वेदना वाले और असात-वेदना वाले होते हैं। वेद-दो प्रकार के होते हैं-स्त्री-वेद वाले भी होते हैं, पुरुष-वेद वाले भी, नपुंसक-वेद वाले नहीं होते। स्थिति-जघन्यतः कुछ-अधिक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम। अध्यवसान प्रशस्त भी, अप्रशस्त भी। अनुबन्ध-स्थिति की भांति वक्तव्य है। कायसंवेध–भव की अपेक्षा से दो भव-ग्रहण, काल की अपेक्षा से जघन्यतः दस-हजार-वर्ष-अधिक-सातिरेक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः छह पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) १२२. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक (यौगलिक)) जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमार के रूप में उपपन्न होता है, वही वक्तव्यता, (भ. २४/१२१) इतना विशेष है-असुरकुमार-देवों की स्थिति और संवेध ज्ञातव्य है। टिप्पण (स्थिति-जघन्यतः 'और उत्कृष्टतः दस हजार वर्ष, कायसंवेध-जघन्यतः दस-हजार-वर्ष-अधिक-सातिरेक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम यौगलिक का और दस हजार वर्ष असुरकुमार का) (तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) १२३. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक (यौगलिक) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असुरकुमार-देव के रूप में उपपन्न होता है, वह जघन्यतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमार के रूप में उपपन्न होता है। यही वक्तव्यता, इतना विशेष है-स्थिति-जघन्यतः तीन पल्योपम, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम। इसी प्रकार अनुबन्ध भी। काल की अपेक्षा जघन्यतः छह पल्योपम, उत्कृष्टतः भी छह पल्योपम–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। शेष पर्ववत्। ७३१
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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