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________________ तेईसवां शतक पहला वर्ग संग्रहणी गाथा १. आलुक २. रोहीतक ३. शैवाल ४. पाठा तथा ५. जंगली उड़द - तेइसवें शतक के पांच वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग के दस उद्देशक हैं। इस प्रकार इन पांच वर्गों के पचास उद्देशक होते हैं । आलुक - आदि जीवों में उपपात-आदि-पद १. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा- भंते! आलुक, मूला, अदरक, हलदी, वन रोहेडा, रिंगणी, जारूल, घोडबेल (बिदारी कंद), वाराही कंद, कुंदरू, कृष्णपुष्पवाली कटभी, जलमहुआ, पुथलकी, गुडमार, तेलियाकंद, नाकुली, गिलोयपद्म, शालिषाष्टिक आदि- इनके जो जीव मूल रूप में उपपन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर ) उत्पन्न होते हैं ? इस प्रकार इन जीवों के संदर्भ में भी मूल आदि दस उद्देशक (भ. २१/१७ में कहे गए) वंश-वर्ग के सदृश कहने चाहिए, केवल इतना अन्तर है - परिमाण - जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कर्षतः संख्यात अथवा असंख्यात अथवा अनंत उत्पन्न होते हैं। अपहार - गौतम ! ये जीव अनंत होते हैं जो समय-समय में अपहृत किए जाने पर अनंत-अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी जितना काल व्यतीत होने पर अपहृत होते हैं, उतने अनंत हैं । स्थिति–जघन्यतः एवं उत्कर्षतः अंतर्मुहूर्त, शेष उसी प्रकार । दूसरा वर्ग २. भंते! रोहीतक, त्रिधारा थूहर थीहू, स्तबक, शाल, अडूसा, कांटा थूहर, काली मूसली - इनके जो जीव मूल रूप में उपपन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं? इस प्रकार इन जीवों के संदर्भ में मूल आदि दस उद्देशक (भ. २३/१) में कहे गए) आलुक - वर्ग की भांति कहने चाहिए, केवल इतना अन्तर है - अवगाहना – (भ. २२/१ में कहे गए) ताल - वर्ग की भांति कहनी चाहिए, शेष उसी प्रकार । ३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । तीसरा वर्ग ४. भंते! आय कुहण (भूमि स्फोट), काय, ग्रन्थिपर्ण, कुन्दुरु (लबान), दारूहल्दी, सका, बड़ा शालवृक्ष, भूइंछत्ता, वंसाणिय ( वंशलोचन और शुकनासा), कुराण (कुरवाण) – इनके ७०७
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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